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________________ व्यापार के लिये प्रस्थान अर्थ :- सागरदत्त और जिनदत्त चने तथा अपने साथ उन्होंने बाखरों बहुत सा अन्य अन्य ( विविश्व प्रकार का ) सामान लिया। उन्होंने उन सब वस्तुओं को मरा जो कठिनाई से तैयार होती थी और विदेशों में बहुत में मँहगी थी ।।१७।। ( सागरदत्त के साथ) चारुदत्त, गुणदत्त सुदत्त, घनदत्त, श्रीगुण, हरिगुण, ऋणादित्त ड़ी था । १५०|| सोमदत्त, भ्रना, तथा हपा सेठ का पुत्र मीठ - क्लिपट - क्लेण युक्त कंप्ट पूर्वक तैयार की हुई । ६१ T १८१ - १८२ I सुठ सुठु सुरुपाल ।। प्रजउ विजउ रजउ चलहि, श्रासे वासे सोम तहि मिलहि । बलिउ साहु तेजू दिवपालु, मरु पुन drea stea हरिचंद पूतु ते वावर भरि चले बहूत । सोल्हे वी गुणहि ग काहु, चलहि विज्जाहर असे साहु चले और आशा, वासा तथा सोम · श्रयं: अजय, विजय तथा रजय ( नाम के व्यापारी उनमें मिल गये । तेजू साह तथा देवपाल चले तथा महरूका सुन्दर पुत्र सुठु तथा श्रीपाल भी उनके साथ हो गये ।। १८१॥ हरिचंद के पुत्र तीकड तथा बीक ( वे भी अपना सामान) बाखरों में भर कर चले। सील्ह तथा बील्ह इस प्रकार चल पड़े कि किसी को (अपने भागे) नहीं मिलते थे तथा विद्यावर मामा साहू भी ( उनके साथ ) खले ।। १८२ ॥ T १-३-१८४ Į अध थोरगवहि ख ख गूढ, छोला खोखर कन्हउ सू । सुमति महामति सोलह ताउ चलिउ सधार वोल्हू चंद तरंग || 1
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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