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________________ गा० २१९] * 'बंधो व संकमो वा णियमा सव्वेसु हिदिविसेसेसु' त्ति एवं पुण पुच्छासुत्तं । ६ १३३ अस्यार्थ उच्यते-'एदं गज्जदि' एवमुक्ते एतत्परिज्ञायते किमिति वायरणमुत्तं ति व्याख्यानसूत्रमिति व्याक्रियतेऽनेनेति व्याकरणं प्रतिवचनमित्यर्थः । 'एदं पुण पुच्छासुत्त' एतत्तु पृच्छासूत्र मेवेति प्रतिपत्तव्यं; गाथासूत्रकाराभिप्रायस्य तथाविधत्वादित्युक्तं भवति । कथं पुनरिदं विज्ञायते प्रश्नवाक्यमेवैतत्, न पुनः प्रतिवचनसूत्रमिनि । अत्रोच्यते-द्विदिबंधट्ठिदिसंकमा जहावुत्तविहाणेणसव्वेसु द्विदिविसेसेसु ण संभवंति; तेसिं परिमियेसु चेव द्विदिविसेसेस पवुत्तिणियमदंसणादो । तम्हा पुच्छावक्कमेदमेव, ण वक्खाणसुत्तमिदि णिच्छेयव्वं । साम्प्रतमिममेवाथ समर्थयितुकाम उत्तरं प्रबंधमारभयति-- * तं जहा। ६ १३४ सगमं । * 'वन्ध और संक्रम नियमसे सब स्थितिविशेषोंमें होता है क्या ? इससे यह जाना जाता है कि क्या यह व्याकरण (व्याख्यान) सूत्र है ? परन्तु यह व्याकरणसूत्र न होकर पृच्छास्त्र है। ६ १३३ अब इसका अर्थ कहते हैं-'एदं णज्जदि' ऐसा कहने पर यह जाना जाता है कि क्या यह व्याकरणसूत्र है या व्याख्यानसूत्र है । जिसके द्वारा व्याक्रियते अर्थात् विशेषरूपसे पूरी तरहसे मीमांसा की जाती है उसे व्याकरणसूत्र कहते हैं उसका अर्थ होता है 'प्रतिवचन' । परन्तु यह (व्याकरणसूत्र न होकर) पृच्छासूत्र है, यह तो पृच्छासूत्र ही है ऐसा जानना चाहिये, क्योंकि गाथासूत्रकारका अभिप्राय उसी प्रकारका है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। शंका--यह कैसे जाना जाता है कि यह प्रश्नवाक्य हो है, किन्तु यह प्रतिवचन सूत्र नहीं है ? समाधान--अब यहां इसका उत्तर कहते हैं-स्थिति और स्थितिसंक्रम जिस प्रकार पूर्वमें इनको विधि कह आये हैं उस विधिके अनुसार सब स्थिति-विशेषोंमें सम्भव नहीं है, क्योंकि उनको परिमित स्थितिविशेषों में ही प्रवृत्ति होनेका नियम देखा जाता है। इसलिये यह पृच्छावाक्य ही है, व्याख्यानसूत्र नहीं, ऐसा यहाँ निश्चय करना चाहिये । ____ अब इसी अर्थका समर्थन करने की इच्छा रखने वाले आचार्य आगेके प्रबन्धको आरम्भ करते हैं। * वह जैसे। $ १३४ यह सूत्र सुगम है।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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