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________________ बालब्रह्मचारी दोशी जी के अष्टाह्निका, रत्नत्रय, दशलक्षणी, आदि समस्त पर्व उपवास पूर्वक जाते हैं। वर्ष में लगभग आधे दिन उपवासी रहने वाले ब्र हीरालाल जी का पूरा समय चिन्तवन-वाचन में जाता है। आगमविरुद्ध लिखने-बोलने वालों को अंकुश लगाना आपकी वीतरागकथा होती है। इस स्पष्ट एवं साधार कथनी-लेखनी के कारण कतिपय दुष्ट लोगों ने आप पर शारीरिक आघात ही नहीं किये, अपित मूच्छित हो जाने पर, मत समझ कर एक बोरे में बांधकर जंगल में फेंक दिया था। किन्तु 'धर्मो रक्षति रक्षितः' के अनुसार वर्षा के कारण आपको होश आया। तथा लोगों की परिचर्या से वे स्वस्थ होकर धर्म-समाज सेवा के साथ 'अंते समाहिमरणं' के मार्ग पर अग्रसर हैं। हमें संघ के इन संरक्षक सदस्य का बहुमान है। प्रा० लीलावंतीबहिन के सहयोग से
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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