SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २१८-२१९] * एदिस्से दस भासगाहाओ । ६ १३० सुगममेदं सुत्तं। एत्थ पडिबद्धाणं दसण्हं भासगाहाणं परिप्फुडमेव समुवलंभादो । संपहि काओ ताओ दसभासगाहाओ त्ति आसंकाए जहाकममेव तासिं समुक्त्तिणं विहासणं च कुणमाणो उवरिमं पबंधमाढवेइ-- * तत्थ पढमाए भासगाहाए समुक्त्तिणा । ६ १३१ तासु दससु मासगाहासु पढमभासगाहाए तत्थ समुक्कित्तणा पुवमेव कीरदि त्ति वुत्तं होदि । * (१६६) बंधो व संकमो वा णियमा सव्वेसु हिदिविसेसेसु । सम्वेसु चाणुभागेसु संकमो मज्झिमो उदो ॥२१९॥ * इस मूलगाथा सूत्रकी दस भाष्यगाथाएँ हैं । ६ १३० यह सूत्र सुगम है । इस विषयमें सम्बन्ध रखनेवाली दस भाष्यगाथाएं स्पष्टरूपसे ही उपलब्ध होती हैं । अब वे दस भाष्यगाथाएं कौन सी हैं ? ऐसी आशंका होनेपर यथाक्रमसे ही उनकी समुत्कीर्तना और विभाषा करते हुए आगेके प्रबन्धको आरम्भ करते है * उनमेंसे प्रथम माष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं। . ६ १३१ उन दस भाष्यगाथाओंमें से यहाँ सर्वप्रथम भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना की जाती है, यह कहा गया है 8 (१६६) विवक्षित कृष्टिका बन्ध और संक्रम नियमसे क्या समी स्थितिविशेषोंमें होता है ? (विवक्षित कृष्टिका स्थितिबन्ध सभी स्थितिविशेषोंमें नहीं होता। परन्तु स्थिति-संक्रम उदयावलिको छोड़कर सभी स्थिति-विशेषोंमें होता है ।) तथा विवक्षित कृष्टिके अनुभागका सभी अनुभाग-सम्बन्धी मेदोंमें संक्रम होता है । मात्र जिस कृष्टिका वेदन करता है उसका मध्यम कृष्टियोंके रूपसे उदय होता है ।। २१९॥
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy