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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चारित्तक्खवणा ६८६ मोहणीयसंबंधेण द्विदि-अणुभागघाद-विदिसंत्तकम्म-उदयोदीरणादिवियप्पा पुव्वमेव सवित्थरं परूविदा त्ति वुत्तं होइ । * नदो वि पुण इमिस्से गाहाए फस्सकएणकरणमणुसंवण्णेयव्वं । ६ ८७ जइ वि पुव्वं मोहणीयविसये द्विदिसंतकम्मपमाणाणुगमादओ' वियप्पा परूविदा, तो वि एदिस्से सुत्तगाहाए अस्थपदंसणट्ठमेत्थ किंचि संखेवपरूवणमणुसंवण्णेय. व्वमिदि भणिदं होदि । ___* ठिदिघादेण १, हिदिसंतकम्मेण २, उदएण ३, उदीरणाए ४, ट्ठिदिखंडगेण५, अणुभागघादेण ६, ठिदिसंतकम्मेण ७, अणुभागसंतकम्मेण ८, बंधेण ९, बंधपरिहाणीए १० । ६८८ संपहि एदेसि दसण्हं वीचाराण मोहणीयविसयाणं किंचिअत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहा-"हिदिघादेणे' त्ति वुत्ते एसो पढमो वीचारो अंतोमुहुत्तेण एगद्विदिखंडयघादकालमुवेक्खदे, द्विदी घादिज्जदि जेण कालेण सो द्विदिघादो त्ति गहणादो। $८६ संज्वलन मोहनीय कर्म के सम्बन्धसे स्थितिघात, अनुभागघात, स्थितिसत्कर्म, उदय और उदीरणा आदि भेद पहले ही विस्तार के साथ कह आये हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * इसलिये फिर भी इस मूल गाथासूत्रका 'स्पर्शकर्णकरण' अर्थात् स्पर्श करके कुछ आगमानुसार वर्णन कर लेना चाहिये । $ ८७ यद्यपि संज्वलन मोहनीयके विषयमें स्थितिसत्कर्मके प्रमाणका अनुगम आदि भेद पहले कह आये हैं तो भी इस मूल स्त्रगाथाके अर्थको स्पष्ट करनेके लिये यहाँपर आगमानुसार संक्षेपसे कुछ प्ररूपण करेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * बह प्ररूपणा स्थितिघात १, स्थितिसत्कर्म २, उदय ३, उदीरणा ४, स्थितिकाण्डक ५, अनुभागघात ६, स्थितिसत्कर्म ७, अनुमागसत्कर्म ८, बन्ध ९, और बन्धपरिहानि १०, इनके द्वारा करेंगे। 5८८ अब मोहनीय विषयक इन दस क्रियाभेदोंके किंचित् अर्थको प्ररूपणा करेंगे । यथा-'दिदिघादेण' इस पदद्वारा ऐसा कहनेपर यह पहला क्रियाभेद अन्तमंहर्तप्रमाण कालके द्वारा एक स्थितिकाण्डकघातके कालकी अपेक्षासे कहा गया है, क्योंकि जिस, कालके द्वारा स्थिति घाती जाती है वह स्थितिघात कहलाता है। ऐसा यहाँ ग्रहण किया गया है। "टिदिसंतकम्मेण" स्थितिसत्कर्म यह दूसरा क्रियाभेद है जो स्थितिसत्कर्मके प्रमाणके अवधारण करनेसे सम्बन्ध रखता है। 'उदयेण' १. पमाणाणुगमादओ ता०, पमाणाणुगमा उदओ प्रे० का० ।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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