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________________ गा० २१०] रागो' चरिमसमयसुहुमसांपराइओ 'णामागोदाणि वेदणीयं च' एदाणि तिण्णि अघादिकम्माणि दिवसस्संतो बंधदि, संखेज्जमुहुत्तपमाणेण बंधदि त्ति वुत्तं होइ, णामागोदाणयट्टमुहुत्तमेत्तट्टि दबंधदसणादो, वेदणीयस्म बारम मुहुत्तमेत्तट्ठिदिबंधदंसणादो त्ति । 'भिण्णमुहुत्तं तु जं सेसं, एदेण सुत्तावयवेण व त्तसे साणं निण्हं घादिकम्भाणमंतोमुहुत्तमेत्तो गुहुमसांपराइयचरिमसमयविसओ हिदिवंधो होदि त्ति एसो अत्थविसेसो जाणाविदो । संपहि एदस्सेव गाहासुत्तत्थस्स फुडीकर णट्ठमुवरिमो विहासागंथो । * विहासा। ६ ५२ सुगम। * चरिमसमयसुहमसांपराइयरू णामागोदाणं हिदिबंधो अट्ठ वेदणीयस्स हिदिबंधो बारसमुहुत्ता।। तिव्ह घादिकम्माणं हिदिबंधो अतोमुहुत्तो ।। ६ ५३ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । एवमेदाहिं तीहिं भासगाहाहि 'के बंधदि'त्ति एदस्स मूलगाहावयवस्स अत्थो भणिदो। संपहि 'के व वेदयदि अंसे । इच्चेदं मूलगाहासुत्तावयवमम्सियण किट्टीवेदगस्स घादिकम्माणमणुभागोदयविसेसगवेसण? चउत्थीए भासगाहाए समुक्कित्तणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइकथनका तात्पर्य है, क्योंकि नामकर्म और गोत्र कर्मका आठ मुहूर्तप्रमाण स्थितिबन्ध देखा जाता है तथा वेदनोय कर्मका बारह मुहूर्तप्रमाण स्थितिबन्ध देखा जाता है। 'भिण्णमुहत्तं च जं सेसं' इस भाष्यगाथा सूत्र के अन्तिम चरणसे पहले कहे गये तोन अघाति कर्मोंसे शेष रहे जो तीन घातिकम उनका अन्तमुहूर्त प्रमाण स्थितिबन्ध सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके अन्तिम समयमें होता है । इस प्रकार इस अर्थविशेषका ज्ञान कराया गया है । अब गाथा सूत्रके इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिये आगेका विभाषा ग्रन्थ आया है * अब इस भाष्यगाथासूत्रकी विभाषा करते हैं। . ६ ५२ यह सूत्र सुगम है ।। * अन्तिम समयवर्ती सक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध आठ मुहूर्तप्रमाण होता है। वेदनीय कर्मका स्थितिबन्ध बारह मुहूर्तप्रमाण होता है । तथा तीन घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है। 8 ५३ ये तीनों सूत्र सुगम हैं। इस प्रकार इन तीन भाष्यगाथाओं द्वारा 'के बन्धदि' इस मूलसूत्र गाथासम्बन्धी अवयवका अर्थ कहा । अब 'के व वेदयदि अंसे' इस प्रकार इस मूल गाथासूत्रसम्बन्धी अवयवका आश्रय करके कृष्टिवेदकके घातिकर्मों के अनुभागके उदयविशेषका अनुसन्धान करनेके लिये चौथो भाष्यगाथाको समुत्कीर्तना करते हुए आगेका सूत्र कहते हैं १. अंतोमुहत्त प्रे० का० ।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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