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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चारित्तक्खवणा * चरिमसमययादर सांपराइयरस णामागोदवेदणीयाण हिदिबंधो वस्सं देसूर्ण । तिहं घादिकम्माणं मुहत्तपुधत्तो हिदिबंधो । $ ४८ एदाणि दो वि सत्ताणि सुगमाणि। णवरि मोहणीयस्स चरिमो द्विदिवधो अंतोमुहुत्तमेत्तो सुपसिद्धो त्ति ण एदम्मि गाहासुत्ते परूविदो । एवं विदिय भासगाहाए अत्थविहासणं समाणिय संपहि तदियभासगाहाए विहासणद्वमुवरिमं सुत्तपबंधमाह । * एत्तो तदियाए भासगाहाए समुक्कित्तणा । $ ४९ सुगम । * तं जहा। ३५० सुगम । * चरिमो य सुहमरागो णामागोदाणि वेदणीयं च । दिवसस्संतो बंधदि भिण्णमुहत्तं तुजं सेसं ॥२१०॥ ५१ एसा तदियभासगाहा चरिमसमयसुहुमसांपराइयस्स छण्हं कम्माणं द्विदिबंधपमाणमेत्तियं होदि त्ति पदुप्पायणट्ठमोइण्णा । तं जहा-'चरिमो य सुहुम * अन्तिम समययी बादरसाम्परायिक क्षपकके नामकर्म, गोत्रकर्म और वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध एक वर्षसे कुछ कम होता है ।। तथा तीन घातिकर्म ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका स्थितिबन्ध मुहूर्तपृथक्त्वप्रमाण होता है। $ ४८ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं। इतनी विशेषता है कि मोहनीय कर्मका अन्तिम स्थितिबन्ध अन्तमुहूर्त प्रमाण सुप्रसिद्ध है, इसलिये इसका कथन इस भाष्यगाथामें नहीं किया है। इस प्रकार इस दूसरी भाष्यगाथाके अर्थको विभाषा समाप्त करके अब तीसरी भाष्यगाथाकी विभाषा करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * अब इससे आगे तीसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं। $ ४९ यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। ६५० यह सूत्र सुगम है। * अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्म साम्परायिक क्षपक जीव नामकर्म, गोत्रकर्म और वेदनीयकर्म को एक दिवसके भीतर बांधता है तथा शेष जो तीन घातिकर्म ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्म हैं उन्हें भिन्नमुहूर्तप्रमाण बाँधता है ।।२१०।। ६५१ यह तीसरी भाष्यगाथा अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसापरायिक क्षपकके छह कर्मों के स्थितिबन्धका प्रमाण इतना होता है, इस बातका कथन करनेके लिये अवतरित हुई है । यथा-'चरिमो य मुहम रागो' अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिक जीव 'णामा-गोदाणि वेदणीयं च' नाम, गोत्र और वेदनीय इन तीन अघाति कर्मोको 'दिवसस्संतो बन्धदि' संख्यात मुहूर्तप्रमाण बाँधता है यह उक्त
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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