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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चारित्तक्खवणा मोहणीयस्स गुणसेढिणिक्खेवो तस्स गुणसेहिणिक्खेवस्स अग्गग्गादो संखेञ्जदिभागो आगाइदो। ___$ २२ एदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे । तं जहा–संखेज्जेसु ठिदिखंडयसहस्सेसु जहावृत्तेण कमेण गदेस तदो मोहणीयस्स चरिमट्ठिदिखंडयमेसो गेण्हमाणो पढमसमयसहुमसांपराइएण जो गुणसेढिणिक्खेवे सगद्धादो विसेसाहियभावेण णिक्खित्तो तस्स गुणसेढिणिक्खेवस्स अग्गग्गादो संखेज्जदिभागमागाएदि । सहुमसांपराइयद्धामेत्तं सेसं परिसेसिय जेत्तिओ सो विसेसुत्तरो णिक्खेवो तं सव्वमेव कंडयसरूवेणागाएदि त्ति वृत्तं होइ । ण केवलमेत्तियं चेत्र गेण्हइ, किंतु तत्तो उवरिमाओ वि ठिदीओ गुणसेढिसीसयादो संखेज्जगुणमेत्तीओ चरिमद्विदिखंडयसरूवेण गेण्हइ, ताहिं विणा गुणसेढिसीसयस्स गहणासंभवादो। सो च सुत्ते तहा णिद्दे सो णत्थि त्ति ण चासंकणीयं, तस्साणुत्तसिद्धत्तादो। तम्हा गुणसेढिसीसएण सह उवरिमाओ अंतोमुहुत्तमेतीओ तत्तो सखेज्जगुणाओ द्विदीओ घेत्तूण मोहणीयस्स चरिमट्ठिदिखंडयमेत्तो णिवत्तेदि त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थ समुच्चओ। $ २३ संपहि चरिमट्ठिदिखंडयस्स पढमसमये उक्कीरमाणपदेसग्गस्स सेढिपरूवणं सुत्तसूचिदं वत्त इस्सामो। तं कधं ? ताधे चेव पढमफालीदव्वमाकड्डियूण उदये किये जाने पर जो मोहनीय कर्मका गुणश्रेणी-निक्षेप है उस गुणश्रेणि-निक्षेपके अग्राग्रभागसे संख्यातवें भागको घात करनेके लिये ग्रहण करता है। $ २२ अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । यथा-संख्यात हजार स्थिति-काण्डकोंके यथोक्त क्रमसे बोत जाने पर पश्चात् मोहनीय कर्मके अन्तिम स्थितिकाण्डकको यह क्षपक ग्रहण करता हुआ प्रथम समयमें सूक्ष्मसाम्परायिकके द्वारा गुणश्रेणी-निक्षेपमें अपने कालसे विशेष अधिकरूपसे जिस द्रव्यको निक्षिप्त किया है उस गुणश्रेणि निक्षेपके अग्राग्रभागसे संख्यातवें भागको ग्रहण करता है। सूक्ष्मसाम्परायिकके कालप्रमाण शेषको अवशिष्ट रखकर जितना विशेष अधिक द्रव्य निक्षिप्त किया है उस सबको काण्डकरूपसे ग्रहण करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । वह केवल इतनेको ही नहीं ग्रहण करता है किन्तु उससे उपरिम जो गुणश्रेणिशोर्षसे संख्यातगुणी स्थितियाँ हैं उन्हें भी अन्तिम स्थिति-काण्डकरूपसे ग्रहण करता है, क्योंकि उसके बिना गुणश्रेणि-शीर्षका ग्रहण करना असम्भव है । यद्यपि सूत्रमें उस बातका उस प्रकारसे निर्देश नहीं किया है सो ऐमी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि उक्त कथन अनुक्तसिद्ध है। इसलिये गुणश्रेणिशीर्षके साथ उससे संख्यातगुणी उपरिम अन्तमुहूर्तप्रमाण स्थितियोंको ग्रहण करके मोहनीय कर्मके अन्तिम स्थितिकाण्डकको यह क्षपक रचित करता है । यह यहाँ पर इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । ६ २३ अब प्रथम समय में अन्तिम स्थितिकाण्डकके उत्कीर्ण होने वाले प्रदेशपुंजकी सूत्रसे सुचित होनेवाली श्रेणी-प्ररूपणा को बतलावेंगे । शंका--वह कैसे ?
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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