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खंड को द्वि० विश्वयुद्ध ने विलम्बित किया था। इसके बाद १९५१ में समाज की अनावश्यक चिन्ता का समाधान करने के लिए मा० संस्थापक प्रधानमंत्री जी के अवकाश पर चले जाने पर आयीं स्थितियों का आर्थिक समाधान, दानवीर सेठ भागचन्द्र जी ( डोंगरगढ़ ) तथा उनकी परमसेवाभावी धर्मात्मा पत्नी नर्मदाबाई जी ने किया था। सेठ दम्पत्ति में; यदि सेठजी संघ जी सेवाओं और पं० जगमोहनलाल जो को आदर्श मानते थे तो सौ० सेठानी बाई पं० फूलचन्द्र जी के जीवन से प्रभावित होकर उन्हें अपना सहोदर ही मानती थीं । फलतः इनके सहयोग से तृतीय खंड के १९५५ में प्रकाशित होने पर यह योजना चली थी। तथा अनेक श्रुत भक्तों एवं बालब्रह्मचारो बालचन्द्र होराचन्द्रजी दोशी के स्वयं-दत्त सहयोग से पूर्णापर है। हम इन सबको सादर एवं साभार स्मरण करते हुए जयधवला प्रकाशन की पूर्णा पर मूल-प्रेरक स्व० पं० राजेन्द्रकुमार जी तथा श्रा०शि० स्व. शान्तिप्रसाद जी का ( सचित्र ) स्मरण करते हुए उन्हें भी नमन करते हैं ।
जो सुअणाण सरीरो जिणवयणाणुगामिनां अग्गो ।
जइधवल वित्ति कत्ता गुरु वीरसेणो/सेणजिनो चिरं जयदु ॥ 'सरलागार' बी २७/८७ ए, दुर्गाकुंड मार्ग। वाराणसी-५
खुशालचन्द्र गोरावाला