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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [जयधवला भाग १५ पृष्ठ पंक्ति शुद्ध अशुद्ध आगे जैसा स्थितिबन्ध क्रम से हीन होता हआ इस समय ३ वर्षों से ऊपर जैसा विभाग तब तीन २५ तीन भाग २८७ ३१ तब इन २९७ २६ शंका २९७ २८ अनन्तगुणीहीन २९८ १२ संछुद्धमाणस्स २९८ २४ द्रव्य को संज्वलन २९८ ३१ क्रोध में संक्रमित होने वालो ३०० १६ अन्तर कृष्टियाँ ३०२ १६ असंख्यातवें भाग ३०२ २२ द्वारा एक ३०२ २७ बादरसूक्ष्मसाम्परायिक ३०२ २८ संख्यातगुणाहीन ३०५ १८ असंख्यातभाग ३०७ २१ हीन है। ३०७ २७ के अन्तिम समय तक बिना अनन्तगुणी संछुद्धे माणस्स. द्रव्य को क्रोष-संज्वलन क्रोव के मान में संक्रमित होने पर मान की अन्तर कृष्टियों के असंख्यात बहुभाग द्वारा खंडित करने पर लन्ध एक बादर साम्परायिक असंख्यातगुणाहीन असंख्यातवें भाग ३१३ ३३ असंख्यातगुणा ३१५ ३१ उक्खेदि दो' ३२२ २० असंख्यातरूपों ३२३ १९ असंख्यातवें ३२४ ३३ अन्तर ३२६ १८ अनन्तर ३२८-२९ ३४ क्योंकि प्रवृत्त ३२९ २० असंख्यातवें भाग में ३२९ २४ अंतिमस्थिति काण्डक कृष्टिकारक के प्रथम समय से लेकर चरम समयवर्ती बादरसाम्परायिक होने तक बिना असंख्यातगुणाहीन उक्खेदिदो' संख्यातरूपों संख्यातवें अनन्तर अन्तर क्योंकि गुणश्रेणि के प्रवृत्त असंख्यात बहुभाग को द्विचरमस्थिति काण्डक
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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