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________________ जयधवला भाग ३ ष्ठ पंक्ति १० ४ अशुद्ध पत्तेय अपज्ज०- तेउ १० १४ जलकालिक १० १५ अग्निकायिक, वायुकायिक ११ ३ बादरे इंदियपज्ज०- बादरपुढवि० बादर पुढविपज्ज. ११ ११ संयतासंयत ११ २० पर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक ११ २१ कायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक १२ २७ उत्कृष्ट १८ १८ बादर ऐकेन्द्रिय पर्याप्त १८ २७ उत्कृष्ट किसके. १९ १४-१५ मोहनीय की स्थिति १९ ३१ घात करके ३१ २१ सत्त्वकाल एक समय कम शुद्ध पत्तेयअपज्ज- [सुहुमपुढवि० पज्जत्तापज्जत्त-सुहुमआउ० पज्जत्तापज्जत्त०] तेउजलकायिक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्मजलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्त, अग्निकायिक, वायुकायिक बादरे इंदियपज्ज०- पुढवि, बादरपुढवि०- बादरपुढवि पज्ज०- आउ०असंयत सम्यग्दृष्टि या संयतासंयत पर्याप्त, पृथ्वीकायिक, बादरपृथ्वीकायिक कायिक पर्याप्त, जलकायिक, बादरजलकायिक, जघन्य बादर एकेन्द्रिय तथा उसके पर्याप्त उत्कृष्ट स्थिति किसके मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति घात न करके सत्वकाल एक समय है, अनुत्कृष्ट स्थिति का जघन्य सत्त्वकाल एक समय कम स्थिति का सस्वकाल सासादन सम्यग्दृष्टि इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ । ४२ १५ स्थिति का जघन्य सत्त्वकाल ४६ ३१ शेष ४६ ३२ मिथ्यादृष्टि ४७ ३२-३३ (बीच में) x ४८ ४ कायजोगि० ४८ १४ काययोगी ५० १४ सत्ता५४ ३४ मत्यज्ञानी, श्रतज्ञानी ७२ ७ एवं पंचकाय-सुहुम७२ ३०-३१ पांचो स्थावर काय ७७ ११ संयतासंयत के....इन गुणस्थानों को पचा मत्यज्ञानी श्रुताज्ञानी एवं सुहुम ८३ २१-२२ और यहाँ मनुष्य जीव ही मरकर उत्पन्न होते हैं। ८४ ६ चक्खु०- ओहिदसण° ८४ २८ चक्षुदर्शनी अवधि । ११० १२ सामान्य तिर्यञ्चों में २९ संयतासंयत व शुक्ललेश्या वालों के .... इन मार्गणा स्थानों को और यह उत्कृष्ट स्थिति मिथ्यादृष्टि मनुष्यों से मरकर उत्पन्न होने वाले जीवों के ही संभव हैं । चक्खु०- अचक्खु०- ओहिदसण. चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधि सामान्य पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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