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________________ शुद्धिपत्र ] पृष्ठ पंक्ति ३१२ ३ संजदासंजद ३१२ ९ संयतासंयत ३१५ ११ अनाहारक काययोगियों में ३१५ २४ ४९०४९ ३१५ ३० ३२० २३ १५ योनिमती ३२० ३२८ ३० १९ ज्योतिषी देवों तक स्त्रीवेदी मनुष्यों ३२८ ११ कृतकृत्यवेदक सम्य० २२ ३२८ १२ ३४५ २५ और नपुंसक वेद तेवीस-तेरस ३४८ ३ ३४८ १४ ३९७ अशुद्ध ३४८ २६ तेईस तेरह ३४९ २३ और नपुंसक वेदी ३४९ २४-२५ तथा नपुंसकवेदी जीव वर्षं पृथक्त्व ३५४ ३१ २१ ३५५ ८ सात ३६४ २० दो तीन ३७६ ११ तथा सौधमं ३७९ ३ ३७९ ३८२ एक मास पृथक्त्व संखेज्जगुणा १५ संख्यातगुणे 67 सव्वत्थोवा एकवि०, चउवीसवि० २३ है । अवस्थित X X ३१ अट्ठाईस प्रकृतियों की सता रूप से अनाहारकों में ५९०४९ शुद्ध १३ योनिनी ( इसी प्रकार सर्वत्र योनिमती के स्थान में योनिनी समझना, क्योंकि 'तिर्यच' पद के साथ 'योनि' पद लगाने का नियम है । अतः स्त्रीवेदी तियंचों के लिये तिर्यग्योनिनी कहा जायेगा । लब्ध्यपर्याप्तकों को छोड़कर ज्योतिषी देवों तक मनुष्यनियों (स्त्रीवेदी मनुष्यों की संज्ञा ही मनुष्यनी है । आगे भी इसी प्रकार समझना चाहिये । ) कृतकृत्यवेदक और क्षायिकसम्य० २२ व २१ X X संखे० गुणा, एकवीस ० ३८२ २४-२५ एक विभक्ति वाले इनसे इक्कीस इक्कीस विभक्ति वाले इनसे एक० ३८६ ४ सत्तम ३८६ १७ सातवीं पृथिवी के ३९३ २७ अपर्याप्त ३९७ तेवीस-बावीस-तेरस ( स्त्रीवेदी का अर्थं द्रव्य से पुरुष हो और भाव से स्त्रीवेदी, ऐसा जानना । ) मास पृथक्त्व ( एक मास पृथक्त्व का भी वही अर्थ है । फिर भी स्पष्टता के लिये संशोधन में ले लिया है । ) तेईस - बाईस - तेरह X २१९ X छह तीन दो तथा सामान्य देव व सौधर्म असंखेज्जगुणा । असंख्यातगुणे सव्वत्योवा एकवीस ० चउवीसवि० संखे० गुणा एक विह० सत्त० सातों पृथिवियों के पर्याप्त X है । अल्पतर विभक्ति का जघन्य अन्तर दो समय कम दो आवलि और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है । अवस्थित
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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