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________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे शुद्ध पुरुषवेदी के समान है । सासादन को X २१८ पृष्ठ पंक्ति ९५ १२ १०१ २९ मिथ्यात्व को १०८ २४-२५ विशेष की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त हैं । १२६ १ १३० १४ १३४ १० १३४ २० १५१ ४ १५१ २२ अशुद्ध पुरुष वेद के समान है । एवं मणुसपज्ज० पुरुषवेद के कृष्ण आदि तीन शेष का एवं कायजोगि ओरालियमिस्स ० इसी प्रकार काययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी एवं पंचिदिय इसी प्रकार पंचेन्द्रिय १५८ ४ १५८ २२ १८० २३ १९४ ४ १९४ २० २२८ २३ २२९ ९ २२९ ३१ २४२ २२ २४२ २५ २४२ २८ २४३ २८ २४३ ३० २४३ ३१ २४९ २६ २५५ १८ २५८ ५ २५८ ११ २६० १६ २६० २९ २६१ १ २६५ ४-५ २७५ २४ मिथ्यात्व में २८७ १४ तीनों २८७ १८ तीनों २८७ २२ तीनों २९२ २३ तीनों लेश्या वालों के अविभक्ति वाले [ अटुक० ] आठ कषाय किसी भी जीव के एवं सामाइय-छेदोव ० इसी प्रकार सामायिक स्त्री वेद के किसी एक के स्त्रीवेद अतः अन्य वेद या नपुंसक वेद दो समय दो समय आयु के जीव असंख्यातवें सम्यक् प्रकृति की सम्यग्मिथ्यात्व की काल ओघ के सम्यग्मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व की ओघ के समान X X एवं मणुस - मणुसपज्ज० पुरुषवेदी के कापोत, पीत, पद्म; ये तीन शेष दो का एवं कायजोग - ओरालिय-ओरालिय- मिस्स ० इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, ओदारिक मिश्रकाययोगी एवं पढमपुढवि-पंचिदिय इसी प्रकार प्रथम पृथिवी, पंचेन्द्रिय विभक्ति वाले बारसक ० बारह कषाय किसी भी मिथ्यादृष्टि जीव के एवं संजद - सामाइय-छेदोव० इसी प्रकार संयत सामायिक [ जयधवला भाग २ पुरुष वेद के स्त्रीवेद या नपुंसकवेद अतः पुरुषवेद X एक समय एक समय काल के जीव पल्य के असंख्यातवें सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति की सम्यक्त्व प्रकृति की काल तिर्यञ्च ओघ के सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक् प्रकृति की देव ओघ के समान सासादन में सब सब सब x
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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