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शास्त्रार्थसंग्रहः ]
प्रत्यक्षं तद्भगवतामहंतां तैश्च भाषितम् । गृह्यतेऽस्तीत्यतः प्राज्ञैर्न छद्मस्थपरीक्षया ||३५|| इति ।
एवमेत्तिएण पबंघेण णिव्वाणफलपज्जवसाणं खवणाविहिं सचूलियं परिसमाणिय तदो पच्छिमक्खंधे समत्ते खवणाहियारो समप्पइ त्ति जाणावणट्टमुवसंहारमाह
* खवणदंड
समत्तो ।
॥ इति ॥
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वह मोक्षसुख अरहन्त भगवन्तोंके प्रत्यक्ष है तथा उनके द्वारा उस सुखका कथन हुआ है, इसलिये विद्वज्जनोंके द्वारा 'वह है' इस प्रकार स्वीकार किया जाता है । किन्तु छद्मस्थोंकी परीक्षाके द्वारा वह स्वीकार नहीं किया जाता ||३५ ॥
इस प्रकार इतने प्रबन्धकेद्वारा निर्वाणफलको प्राप्ति तक चूलिका सहित क्षपणाविधिको समाप्त कर तदनन्तर पश्चिमस्कन्धके समाप्त होनेपर क्षपणा नामका अधिकार समाप्त होता है, इस बातका ज्ञान कराने के लिये उपसंहारपरक सूत्रको कहते हैं
* इस प्रकार 'क्षपणादण्डक' समाप्त हुआ ।
॥ इति ॥