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________________ गा० २१३] * चरिमे बादररागे णामागोवाणि वेदणीयं च । वस्सस्संतो बंधदि दिवसस्संतो य ज सेसं ॥१०॥ ६ ३२१ गतार्थत्वान्नैतद्गाथासूत्रमनुटीक्यते। चूलिकाप्ररूपणार्थं तु पुनरुक्तगाथोपन्यासेऽपि न किंचिदुष्यतीति प्रतिपत्तव्यम् । एत्तो एक्कारसमी सुत्तगाहा-- * जं चावि संछहंतो खवेइ किहिं अबंधगो तिस्से । सुहुमम्हि संपराये अबंधगो बंधगियराणं ॥११॥ ६ ३२२ एसा वि गाहा पुव्वमेव सुणिण्णीदत्था त्ति ण एत्थ किंचि वक्खाणेयध्वमत्थि । एवमेदाओ एक्कारस सुत्तगाहाओ सुहुमसांपराइयगुणट्ठाणपज्जंताए चरित्तमोहक्खवणाए चूलियाभावेण दट्ठव्वाओ। एत्तो खीणकसायद्धाए तिण्हं घादिकम्माणमुदयोदीरणादिविसेसपदुप्पायणमुहेण तेसिं खवणविहाणपरूवणटुं सजोगिकेवलिगुणट्ठाणसरूवणिरूवणटुं च बारसमीए सुत्तगाहाए समोयारो-- * बादररागके अन्तिम समयमें क्षपकजीव नाम, गोत्र और वेदनीयकर्मको एक वर्षके भीतर बाँधता है तथा शेष रहे तीन घातिकर्मों को एक दिवसके भीतर बांधता है ॥१०॥ ६२२१ गतार्थ होनेसे इस गाथासूत्रकी टीका नहीं करते हैं। चूलिकाका प्ररूपण करनेकेलिये तो उक्त सूत्रगाथाओंका पुनः कथन करनेपर भी कोई दोष नहीं है, ऐसा यहाँ जानना चाहिये । अब आगे ग्यारहवीं सूत्रगाथा कहते हैं * जिस कृष्टिको संक्रमण करता हुआ क्षय करता है उस कृष्टिका वह क्षपक बन्धक नहीं होता तथा सूक्ष्मसाम्परायमें तत्सम्बन्धी कृष्टियोंका अबन्धक होता है। किन्तु इतर कृष्टियोंका [वेदन या क्षपणकालमें] वह बन्धक होता है ॥११॥ ६ ३२२ इस सूत्रगाथाके अर्थका भी पहले ही अच्छी तरहसे निर्णय कर आये हैं, इसलिये यहाँपर कुछ भी व्याख्यान करने योग्य नहीं है। इसप्रकार ये ग्यारह सूत्रगाथायें सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानतक चारित्रमोहनीयको क्षपणामें चूलिकारूपसे जानना चाहिये। आगे क्षीणकषायके कालमें तीन घातिकर्मो का उदय और उदीरणा आदिरूप विशेषके प्रतिपादनद्वारा उनकी क्षपणाविधिके प्ररूपण करनेकेलिये सयोगिकेवलो गुणस्थानके स्वरूपका प्रतिपादन करनेकेलिये बारहवीं सूत्रगाथाका अवतार करते हैं १.क० प्रती चरिमो बादररागो (१५६) २०९ इति पाठः ।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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