SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ मालूम पड़ते हैं, भले ही उनके विचार पहले जैसे न रहे हों। वे अपनेको प्रसिद्धि से दूर रखते हैं, उनके इस गुणका जितना आदर किया जाय वह थोड़ा है । वे इस समय भी स्वाध्याय में लगे रहते हैं। इसके लिये उन्होंने वकील के पेशे से बहुत पहले मुक्ति ले ली थी। जिस प्रकार स्व० मुख्तार सा० षट्खण्डागम और कषायप्राभूत के स्वाध्यायी विद्वान् थे। उसी प्रकार वे भी इन दोनों महान् ग्रन्थों के स्वाध्यायी विद्वान हैं। वे इस कारण धन्यवादके पात्र तो हैं ही, मैं उनका अभिनन्दन करता हूँ । कषायप्राभृतके १५ अनुयोगद्वार हैं । पर वह १६ भागों में पूरा हुआ है। इस समय संघ के महामन्त्री श्री मान्य पं० ताराचन्द जी प्रेमी हैं । वे सहृदय व्यक्ति हैं। देश-कालके जानकार हैं। उन्हींके संरक्षणमें कषायप्राभूत- जयधवला सम्पादित और अनुवादित होकर पूरा हो रहा है। इसलिए मैं उनको धन्यवाद देता हूँ । संस्थाके सभापति मान्य सेठ रतनलालजी गंगवाल कलकत्ता हैं। वे शुद्धाम्नाय तेरापन्थ के अनन्य नेता हैं । वे इस आम्नायके पुरस्कर्ता हैं । इसलिये वे भी - धन्यवाद के पात्र हैं । मान्य पं० जगन्मोहनलालजी शास्त्री इस संस्थाके कर्ता-धर्ता हैं । उनकी राय सर्वोपरि मानी जाती है । वे स्व० मान्य पं० कैलाशचन्दजी के अन्यतम मित्र हैं । ऐसा लगता है कि उनके संस्थाका वर्तमान रूप बना हुआ है इसके लिये वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। रहने डा० सुदर्शनलालजी जैन रीडर, संस्कृत विभाग, हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने इस भाग प्रूफ रीडिंग में बहुत श्रम किया है। जहाँ कहीं मूल और अनुवादको प्रेसकापीमें उन्हें अड़चनें आईं तो उन्होंने उन्हें स्वयं संशोधित करके सम्हाल लिया है। हर काम छोड़कर वे इस कार्य में लगे जिससे यह भाग शीघ्र छप सका। इसके लिये वे भी धन्यवादके पात्र हैं । लगभग दो वर्ष से हम यहाँ दि० जैन पुराना मन्दिर में रह रहें हैं । इसके मन्त्री मान्य बाबू सुकमालचन्दजी जैन मेरे हैं । मान्य बाबू हंसाजी मेरठ उनके साथी हैं। वे यहाँ रहकर संस्था को उन्नत करनेमें लगे हुए हैं। दोनों व्यक्ति सम्पन्न घरानेके हैं। उनके कारण यह संस्था निरन्तर प्रगति कर रही है । मान्य हंसा बाबूके परिवारके लोग मेरठ में रहते हैं । वे इस संस्थाको सब प्रकार से उन्नत बनानेके लिए यहाँ रह रहे हैं । वे स्वयंका उत्तरदायित्व स्वयं सम्हाले हुए हैं, फिर भी संस्थाके हितमें लगे हुए हैं। पुराने मन्दिरजी को छोड़कर यहाँ उसके परिसर में जो नन्दीश्वर द्वीपके जिनालयों की रचना हुई है, समोसरण मन्दिरका निर्माण हुआ है वह सब उनके सक्रिय सहयोग से हुआ है । वे इसे ऐसा बना देना चाहते हैं कि हस्तिनापुर क्षेत्र एक आदर्श संस्था बन जाय । वे होमियोपैथिके अभ्यस्त डाक्टर हैं । आजू-बाजूके देहाती भाई और संस्था में रहने वाले भाई-बहिन सदा उनसे लाभान्वित होते रहते हैं। दवा मुफ्त वितरित करनेमें वे स्वयंको गौरवान्वित मानते हैं । यहाँ कार्यालयका पूरा उत्तरदायित्व स्वतन्त्रता सेनानी बाबू शिखरचन्दजी सम्हाले हुए हैं । सहृदय व्यक्ति हैं । कभी भी आप उनके पास पहुँचिये वे सेवाकेलिये सदा तैयार मिलेंगे । कार्यालय के लिये जैसा प्रभावक व्यक्ति होना चाहिए, वे हैं । उनके साथी श्री बाबू सुरेन्द्रकुमारजी बाहर का काम सम्हालते हैं । संस्थाका एक बाग है । उसकी देखरेख उनके जिम्मे है । वे संस्थाके हितमें सावधान हैं । भाई दत्ताजी कार्यालयकी लिखा-पढ़ीमें लगे रहते हैं । वे मिलनसार मेनेजर के काममें हाथ बटाते रहते हैं । इससे हमें यहाँ रहने में कोई अड़चन यहाँ रहें यह क्षेत्र समितिकी इच्छा है । वे सब धन्यवाद के पात्र हैं । व्यक्ति हैं । प्रधान नहीं जाती। हम
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy