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खवगसेढोए किट्टीपडिबद्धपढममूलगाहापरूवणा * तत्थ एक्कारस मूलगाहाओ ।
६१२६. तत्थ किट्टीकरणद्धाए पडिबद्धाओ एक्कारस मूलगाहाओ होंति, तासिमेत्तो विहासा अहिकीरवि त्ति वुत्तं होंदि। चरित्तमोहक्खवणाए अट्ठावीसमूलगाहासु पडिबद्धासु तत्थ पटुवगे चत्तारि मूलगाहाओ पढममेव विहासिदाओ। तदणंतरं संकामगे चत्तारि मूलगाहाओ, ओवट्टणाए तिणि मूलगाहाओ त्ति एवमेदाओ एक्कारस मूलगाहाओ जहासंभवमप्पप्पणो भासगाहाहि सह विहासिदाओ। एण्हिं पुण किट्टीकरणद्धाए पडिबद्धाणमेक्कारसहं मूलगाहाणं सभासगाहाणमत्थ. विहासणं जहावसरपत्तं वत्तइस्सामो त्ति एसो एदस्स भावत्थो । तासि च जुगवं वोत्तुमसक्कियत्तादो जहाकममेव विहासणं कुणमाणो पढममूलगाहाए ताव समुक्कित्तणट्ठमुत्तरसुत्तमाह
* पढमाए मूलगाहाए समुक्कित्तणा।
६ १२७. तासिमेक्कारसण्हं मूलगाहाणं मझे पुत्वमेव ताव पढममूलगाहाए समुक्कित्तणा कीरवि त्ति वुत्तं होइ। (१०९) केवदिया किट्टओ कम्हि कसायम्हि कदि च किट्टीओ।
किट्टीए किं करणं लक्खणमध किं च किट्टीए ॥१६२।। ६१२८. एदिस्से गाहाए अत्यो वुच्चदे। तं जहा-'केवदिया किट्टीओ' एवं भणिदे चउण्हं कसायाणं भेदविवक्खमकादूण सामण्णण केत्तियमेत्तीओ संगहावयवकिट्टीओ होंति त्ति पुच्छा कदा होइ। एवमेसो पढमो अत्थो। पुणो चउण्हं कसायाणं भेव विवक्खं कादूण तत्थ एवकेक्कस्स कसायस्स केवडियाओ किट्टीओ होंति ति विदिओ अत्यो। एदम्मि पडिबद्धो सुत्तस्स विदियावयवो
* उस विषय में ग्यारह मूल गाथाएं हैं।
६१२६. वहां कृष्टिकरण कालसे सम्बद्ध ग्यारह मूल गाथाएँ हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। चारित्रमोहकी क्षपणासम्बन्धी अट्ठाईस मूल गाथाएँ कही हैं। उनमेंसे प्रस्थापक सम्बन्धी चार मूल गाथाओंका पहले ही व्याख्यान कर आये हैं। तदनन्तर संक्रामकसम्बन्धी चार मूल गाथाएँ तथा अपवर्तना सम्बन्ध तीन मूल गाथाएं इस प्रकार इन ग्यारह मूल गाथाओंका यथासम्भव अपनी-अपनी भाष्य-गाथाओंके साथ व्याख्यान कर आये हैं। परन्तु इस समय कृष्टिकरण कालसे सम्बन्ध रखनेवाली ग्यारह मूल गाथाओंका अपनी भाष्यगाथाओंके साथ यथावसर प्राप्त व्याख्यान करेंगे यह इस सूत्रका भावार्थ है। किन्तु उनका एक साथ कथन करना अशक्य होनेसे यथाक्रम ही व्याख्यान करते हुए सर्वप्रथम प्रथम मूल गाथाकी समुत्कीर्तना करने के लिए मागेके सूत्रको कहते हैं
* उनमें से प्रथम मूल गाथाकी समुत्कोतना करते हैं।
६१२७. उन ग्यारह मूल गाथाओंमेंसे सबसे पहले प्रथम मूल गाथाको समुत्कीर्तना की जाती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* कृष्टियाँ कितनी हैं और किस कषायमें कितनी कृष्टियाँ हैं। कृष्टिके कौनसा करण होता है तथा कृष्टिका लक्षण क्या है।
१२८. अब इस गाथाका अर्थ कहते हैं। वह जैसे-'केवडिया किट्टीओ' ऐसा कहनेपर चारों कषायोंकी भेदविवक्षा किये बिना सामान्यसे कितनी संग्रह कृष्टियां तथा कितनी अवयव कृष्टियां होती हैं यह पृच्छा की गयी है। इस प्रकार यह प्रथम अर्थ है। पुनः चारों कषायोंकी भेदविवक्षा करके उनमें से एक-एक कषायकी कितनी कृष्टियां होती हैं इस प्रकार दूसरे अर्थसे युक्त