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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
६८. संपहि परंपरोवणिधाए सव्वजहण्णलोमकिट्टोपदेसग्गादो सवुक्कस्सकोहकिट्टीए पदेस कधमवचिदित्ति आसंकाए णिरागीकरणट्ठमुत्तरसुत्तमाह
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* परंपरोवणिधाए जहण्णियादो लोभकिट्टीदो उक्कस्सियाए कोधट्टिकीए पसग्गं विसेसहीणमणंतभागेण ।
६ ६९. कुदो एवं चे ? किट्टीअद्धाणस्स एयगुणहाणिट्टानंतरस्साणं तिमभागपमाणत्तादो । एत्थ होणा से सदव्यमाणं रूवण किट्टिमद्धाण में त्तवग्गण विसेसा त्ति घेत्तव्वं ।
६ ७०. संपहि कोहचरिमकिट्टीए णिसित्तपदेसग्गादो अव्वफद्दयादिवग्गणाए णिवदमाणपदेसग्गस्स पमाणानुगमं कस्सामो । तं जहा- कोहचरिमकिट्टीए णिसित्त पदेसग्गादो अपुव्वद्दयादिवग्गणाए णिवदमाणपदेसग्गमणंतगुणहोणं होदि । किं कारणं ? कोधचरिमकिट्टीए अनंताओ
६ ६८. अब परम्परोपनिधाकी अपेक्षा सबसे जघन्य लोभ कृष्टिके प्रदेशपुंजसे लेकर सबसे उत्कृष्ट क्रोध कृष्टिमें प्रदेशपुंज किस प्रकार अवस्थित है ऐसी आशंका होनेपर निःशंक करने के लिए आगे सूत्रको कहते हैं
* परम्परोपनिधाकी अपेक्षा जघन्य लोभकृष्टिसे उत्कृष्ट क्रोधकृष्टिमें प्राप्त हुआ प्रवेशपुंज अनन्त भागप्रमाण विशेष हीन है ।
९ ६९. शंका - ऐसा किस कारणसे है ?
समाधान — क्योंकि कृष्टियोंका अध्वान एक गुणहानि स्थानान्तरके अनन्तवें भागमात्र है । यहाँ पर हीन हुआ समस्त द्रव्य एक कम कृष्टि अध्वान (आयाम) प्रमाण वर्गणाविशेषरूप है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए ।
विशेषार्थं - जहाँ अनन्तरोपनिधामें प्रथम कृष्टिके बाद दूसरी कृष्टि में कितने हीन द्रव्यका निक्षेप हुआ है । इसी प्रकार द्वितीयादि प्रत्येक कृष्टिसे तीसरी आदि प्रत्येक कृष्टिमें उत्तरोत्तर कितने हीन द्रव्यका निक्षेप हुआ है इसका निर्देश किया गया है वहीं परम्परोपनिधाको अपेक्षा arrat जघन्य कृष्टिने क्रोधको अन्तिम कृष्टिमें सब मिला कर कितने हीन द्रव्यका निक्षेप हुआ है यह विचार किया गया है। यहां इतना विशेष समझना चाहिए कि जहाँ अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा एक कृष्टिसे उसके अनन्तरकी दूसरी कृष्टिमें जितना द्रव्य होन होकर दिया गया है उस होन द्रव्यका प्रमाण सब द्रव्य के अनन्तवें भागमात्र है वहां परम्परोपनिधाकी अपेक्षा भी लोभकी जघन्य कृष्टिसे क्रोधकी अन्तिम कृष्टिमें जितना द्रव्य होन होकर निक्षिप्त हुआ है वह होन द्रव्य भी सब कृष्टियोंको प्राप्त होनेवाले सब द्रव्य के अनन्तवें भागप्रमाण है । फिर भी यह एक कृष्टिसे दूसरी कृष्टिमें जितना द्रव्य होन हुआ है उसे एक कम कृष्टि अध्वानप्रमाण वर्गणाविशेषोंसे गुणित करने पर जो लब्ध आवे उतना होता है ।
७०. अब क्रोधको अन्तिम कृष्टिमें निक्षिप्त हुए प्रदेशपुंजसे अपूर्वं स्वधंकोंकी आदि aण में निक्षिप्त होनेवाले प्रदेशपुंजके प्रमाणका अनुगम करेंगे। वह जैसे - क्रोधको अन्तिम कृष्टिमें निक्षिप्त हुए प्रदेशपुंजसे अपूर्वं स्पर्धकको आदि वर्गणा में निक्षिप्त होनेवाला प्रदेशपुंज अनन्तगुणा हीन है ।
शंका- इसका क्या कारण है ?
१. मा. प्रतौ कधमिव चिट्ठदि इति पाठः ।