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________________ aaraढी तत्थ दिञ्जमानपदेसग्गपरूवणा ३२५ पुग्ध व संखेज्जगुणहोणं पर्देसपिडं णिसिचदि । तत्तो परं विसेसहीणं जाव अप्पणो उक्कोरिदपदेसमावलियमेत्तकाले अपत्तो त्ति । एवं तदियादिसमएसु वि एसा सेढिपरूवणा णिव्वामोहमणुगंतव्वा जाव पढमट्ठिदिखंडयदुचरिमसमओ त्ति । ६८१२. संपहि पढमट्ठिदिखंडयचरिमफालीए णिवदमाणाए जो पदेस विण्णा सक्कमो तस्स किचि फुडीकरणं वत्तइस्सामा । तं जहा - विदियट्ठिदिसयलदव्वस्स संखेज्जदिभागमेत्तं चरिमफालिधं घेत्तूण उदये पदेसग्गं थोवं देवि । विदियाए द्विदीए असंखेज्जगुणं देदि । एवमंतोमुहुत्तकालमसंखेज्जगुणाए सेढीए णिक्खिवमाणो गच्छदि जाव गुणसेढिसीसये त्ति । एवं च गुणसेढीए णिवविदासेसदव्वं चरिमफालीदथ्वस्सा संखेज्जदिभागमेत्तं चैव दटुवं । तदो गुणसेढिसीसयादो उवरिमाणंतरा जाएगा ट्ठिदी तत्थासंखेज्जगुणं देदि । तदो उवारं विसेसहीणं णिविखवमाणो गच्छदि जाव अंतरचस्मिद्विदि भूदपुण्वणय विसयोकयं संपत्तो त्ति । गुणसेढिसीसयादो उवरि एवम्मि अंतरद्धाणे णिवदिदसयलदब्बं चरिमफालीदव्वस्स संखेज्जदिभागमेत्तमिद घेत्तव्वं । पुणो अंतरच रिमद्विदीदो जा विदियट्ठिदीए आदिट्ठिदी तिस्से पदेसमां संखेज्जगुणहोणं देदि । तदो उवरिमासु सव्वासु द्विदीसु विसेसहीणं देदि असंखेज्जदिभागमेत्तेण । ६ ८१३. संपहि एत्थ विदियट्टिदीए आदिट्ठिदिम्मि संखेज्जगुणहोणं पदेसणिसेगं कुणवित्ति एक्स्स कारणमित्यमणुगंतव्वं । तं जहा - पढमट्ठिदिखंडयस्स दुचरिमफाली जाव णिवददि ताव प्राप्त होनेतक विशेषहीन द्रव्य देता है । उससे आगे दूसरी स्थितिसम्बन्धी आदिको स्थिति में पहले के समान संख्यातगुणहीन प्रदेशपिण्डका सिंचन करता है। उससे आगे अपने उत्कीरित किये गये स्थान तक एक आवलि प्रमाणकालके द्वारा नहीं प्राप्त होता हुआ विशेष हीन प्रदेश- पिण्डका सिंचन करता है । इसी प्रकार तीसरे आदि समयों में भी यह श्रेणिप्ररूपणा व्यामोह रहित होकर प्रथम स्थितिकाण्डकके द्विचरम समयके प्राप्त होने तक जान लेनी चाहिए । ६८१२. अब प्रथम स्थितिकाण्डकको अन्तिम फालिके पतन होते समय जो प्रदेश विन्यास - का क्रम है उसे किचिद् स्पष्ट करनेके लिए बतलायेंगे । वह जैसे - द्वितीय स्थितिके समस्त द्रव्यके संख्यातवें भागप्रमाण अन्तिम फालिसम्बन्धी द्रव्यको ग्रहण करके उदय में स्तोक प्रदेशपुंजको देता है । दूसरी स्थिति में असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजको देता है। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त कालतक असंख्यातगुणित श्रेणिद्वारा निक्षेप करता हुआ गुणश्रेणिशीर्षके अन्तिम समयतक जाता है । और यह गुणश्रेणिमें पतित हुआ समस्त द्रव्य अन्तिम फालिसम्बन्धी द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है ऐसा जानना चाहिए। उसके बाद गुणश्रेणिशीर्ष से उपरिम अनन्तर जो एक स्थिति है उसमें असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजको देता है। उससे ऊपर विशेष होन प्रदेशपुंजका निक्षेप करता हुआ भूतपूर्वं नयी विषय की गयी अन्तरकी अन्तिम स्थिति को प्राप्त होनेतक जाता है । गुणश्रेणिशीर्षसे ऊपर अन्तरसम्बन्धी इस आयाममें पतित हुआ समस्त द्रव्य अन्तिम फालिसम्बन्धी द्रव्यके संख्यातवें भागप्रमाण होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। पुनः अन्तरसम्बन्धी अन्तिम स्थितिसे द्वितीय स्थितिकी जो आदि स्थिति है उसमें संख्यातगुणहीन प्रदेशपंजको देता है उससे उपरिम समस्त स्थितियोंमें असंख्यातवें भागप्रमाण विशेषहीन प्रदेशपुंज देता है। ६ ८१३. अब यहाँ पर दूसरी स्थितिकी आदि स्थिति में संख्यातगुणहीन प्रदेशोंका निक्षेप करता है इसका कारण इस प्रकार जानना चाहिए। वह जैसे - प्रथम स्थितिकाण्डकी द्विवरम
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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