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________________ खवगसेढोए गुणसे ढिपमाणपरूवणा * अंतोमुहुत्तद्धमेत्तमसंखेज्जगुणाए सेढीए देदि । ६८०४. उदयद्वदीए णिसित्तपदेस पडादो असंखेज्जगुणं पदेसग्गं तत्तो अनंत रोव रिमट्ठिदीए सिचदि । तत्तो वि असंखेज्जगुणं पदेसग्गं तदुवरि द्विदीए णिसिचदि । एवमणंतराणंत सदो असंखेज्जगुणं पदेसग्गं णिसिंचमाणो गच्छदि जाव अंतोमुहुत्तमेत्तद्वाणमुवरि गंतणेत्थतणगुणसे दसोसयं जावं ति । एवं च गुण से ढिअद्धाणमेत्थतणसयलंतरायामस्स संखेज्जदिभागमेत्तमिदि घेतव्वं । पहिएदसेव गुण से ढिणिक्खेवायामस्स फुडीकरणट्ठमुत्तरमुत्तणिद्देसो * गुणसेढिणिक्खेवो सुहुमसांपराइयद्धादो विसेसुत्तरो । ३२१ ६ ८०५. सुहुमसां पराइयद्धा अंतोमुहुत्तमेत्ती होदि । तत्तो विसेसुत्तरो एसो गुण से ढिणिक्खेवायामो वो, तत्तो संखेज्जभागढ महियत्तेणेदस्स गुणसेढिणिवखेवायामस्स पवृत्तिदंसणादो । णाणावरणादिकम्माणं पितक्कालभाविओ गलिदगुणसेढिणिक्खेवायामो सुहुमसांपराइयद्वादो विसेसुत्तरो होण पयट्टमाणो एत्तो अंतोमुहुत्तद्वाणमुवरि चडिण वट्ठदित्ति ददुव्वो; खोणकसायाणं पि पि बोलेयूण तस्सावद्वाणनियमदंसणादो । एवमेदम्मि अद्धाणे ओकडिदसयलदव्यस्सा संखेज्जदिभागं गुणसेढीए णिविखविय पुणो से सबहुभागदव्वमेत्तो उवरिमासु द्विदीसु णिसिंचमाणो कधं निसिचदित्ति आसंकाए णिरेगीकरणट्ठमुत्तरसुतारंभी * गुणसेढीसी सगादो जा अणंतरट्ठिदी तत्थ असंखेज्जगुणं । * उसे अन्तर्मुहूर्तकाल तक असंख्यातगुणे श्रेणीरूपसे देता है । $ ८०४ उदय स्थिति में निक्षिप्त किये गये प्रदेशपुंजसे संख्यातगुणे प्रदेशपुंजको उससे अनन्तर उपरिम स्थितिमें सींचता है । फिर उससे भी असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजको उससे ऊपरको स्थिति में सिंचन करता है । इस प्रकार अनन्तर अनन्तररूपसे असख्यातगुणे प्रदेशपुंजका सिंचन करता हुआ तबतक जाता है जब अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आयाम ऊपर जाकर यहाँसम्बन्धी गुणश्रेणिशोषं प्राप्त हो जाता है, परन्तु यह गुणश्रेणि आयाम यहाँसम्बन्धी समस्त अन्तर आयामके संख्यातवें भागप्रमाण होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। अब इसो गुणश्रेणिनिक्षेपके आयामको स्पष्ट करने के लिए आगे के सूत्रका निर्देष करते हैं • वह गुणश्रेणिनिक्षेप सूक्ष्मसाम्परायिक के कालसे विशेष अधिक होता है । $ ८०५. सूक्ष्मसाम्परायिककाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है, अतः उससे विशेष अधिक यह गुण निक्षेपका आयाम जानना चाहिए, क्योंकि उससे इस गुणश्रेणि निक्षेपके आयामकी संख्यातवें भाग अधिक प्रवृत्ति देखी जाती है। ज्ञानावरणादि कर्मोंका भी तत्कालभावी गलित गुणश्रेणि निक्षेपसम्बन्धी आयाम सूक्ष्मसाम्परायिक के कालसे विशेष अधिक प्रवृत्त होता हुआ इससे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयाम ऊपर जाकर अवस्थित रहता हैं ऐसा जानना चाहिए, क्योंकि क्षोणकषायके कालको बिताकर उसके अवस्थानका नियम देखा जाता है। इस प्रकार इस आयाममें अपकर्षित किये गये समस्त द्रव्य के असंख्यातवें भागको गुणश्रेणिमें निक्षिप्त करके पुनः शेष बहुभागप्रमाण द्रव्यको इससे ऊपरकी स्थितियों में सिंचन करता हुआ किस प्रकार सिंचन करता है ऐसी आशंका के होनेपर निःशंक करनेके लिए आगे के सूत्रको आरम्भ करते हैं— * गुणश्र ेणि शीर्षसे जो तदनन्तर स्थिति है उसमें असंख्यातगुणे द्रव्यको देता है । ४१
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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