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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे भागं मोत्तूण सेसमज्झिमकिट्टीसहवेण असंखेज्जे भागे बंधदि त्ति एसो एदस्स सुत्तद्दयस्स समुदायत्यो। णवरि संकमणावलियमेत्तकालं पुवकिट्टीणं चेव पदेसग्गमोड्डियूण सोलसगुणकिट्टोणमसंखेज्जाभागसरूवेणे वेदेदि तदणुसारेणेव च बंधदि त्ति घेत्तध्वं । संपहि सेसकसायेसु अणुभागबंधपवुत्ती केरिसी होदि त्ति आसकाए णिण्णयविहाणट्ठमुत्तरसुत्तारंभो
* सेसाणं कसायाणं पढमसंगहकिटटीओ बंधदि । ६७१८. सुगमं।
* जेणेव विहिणा कोधस्स पढमकिटी वेदिदा तेणेव विधिणा माणस्स पढमकिट्टि वेदयदि ।
६७१९. समये समये अग्गकिट्टिप्पहुडि उवरिमासंखेज्जभागविसयाओ किट्टीओ अणुसमयओवट्टणाघादेण घादेमाणो "वकबंधपदेसग्गेण संकामिज्जमाणपदेसग्गेण च किट्टीअंतरेसु संगहकिट्टीअंतरेसु च जहासंभवमपुवाओ किट्टीओ णिवत्तेमाणो अणुसमयमणंतगुणहाणीए बंधोदयजहण्णुक्कस्सणिव्वग्गणाओ च कुणमाणो जहाकोहपढप्रसंगहकिट्टीए वेदगो जादो तहा चेव माणपढमसंगहकिट्टिमेण्हि वेदेदि, ण एत्थ किंचि णाणत्तमत्थि त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसब्भावो। संपहि एदस्सेवत्थस्स फुडोकरण?मुत्तरसुत्तमाह
छोड़कर शेष मध्यम कृष्टिरूपसे असंख्यात बहुभागको बांधता है। इस प्रकार इन दो सूत्रोंका यह समुच्चयरूप अर्थ है। इतनी विशेषता है कि संक्रमणावलिप्रमाण काल तक पूर्व कृष्टियोंके हो प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके सोलहगुणी प्रमाण कृष्टियोंके असंख्यात बहुभागरूपसे वेदन करता है और उसके अनुसार ही बन्ध करता है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए। अब शेष कषायोंमें अनुभागबन्धकी प्रवृत्ति कैसी होती है ऐसी आशंका होनेपर निर्णय करनेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं
* शेष कषायोंकी प्रथम संग्रहकृष्टियोंको बांधता है। ६७१८. यह सूत्र सुगम है।
* जिस हो विधिसे क्रोधको प्रथम कृष्टिका वेदन किया है उसी विधिसे मानकी प्रथम कृष्टिका वेदन करता है।
६.१९. प्रत्येक समय में अग्र कृष्टि से लेकर उपरिम असंख्यात भागविषयक कृष्टियोंका अनुसमय अपवर्तनाघातके द्वारा घात करता हुआ तथा नवकबंध प्रदेशपुंजरूपसे और संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजरूपसे कृष्टियोके अन्तरालोंमें और संग्रहकृष्टियोंके अन्तरालोंमें यथासम्भव अपूर्वकृष्टियोंकी रचना करता हुआ अनुसमय अनन्तगुणहानिरूपसे बन्ध और उदयरूप जघन्य और उत्कृष्ट निर्वर्गणाओंको करता हुआ जिस प्रकार क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिका वेदक हुआ था उसी प्रकार मानकी प्रथम संग्रहकष्टिका इस समय वेदन करता है, इसमें कुछ भी नानापन ( भेद ) नहीं है यह यहाँपर सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है। अब इसी अर्थको स्पष्ट करने के लिए आगेके सूत्रको कहते हैं
१. ता. प्रतो मसंखेज्जभागसरूवेण इति पाठः