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________________ २७४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * लोभस्स पढमादो किट्टीदो पदे मग लोभस्स विदियं च तदियं च गच्छदि । * लोभस्म विदियादो पदेसग्गं लोभस्स तदियं गच्छदि । ६६८३. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि त्ति ण एत्थ किंचि वक्खाणेयध्वमत्थि। कोहपढमसंगहकिट्टीवेदगद्धाए वि एसा संकमपरिवाडी अणुगंतव्वा । णवरि कोहपढमसंगहकिट्टोदो पदेसग्गमप्पणो विदिय दियसंगहकिट्टीओ च गच्छदि माणपढमं च, तमादि कादूण संगहकिट्टीणं जहा णिहिट्ठाए परिवाडीए संकमणियमदसणादो। एसो अत्यविसेसो संकामिज्जमाणेण पदेसग्गेण णिवत्तिज्ज. माणकिट्टीणं साहणटुं परूविदो ददृव्वो। संपहि कोहविदियसंगहकिट्टि वेदेमाणो कि सम्वेसि कसायाणं विदियसंगहकिट्टीओ चेव बंधाद आहो कोहस्स विदियसंगहकिट्टिसेसाणं च पढमसंगहकिट्टिमेव बंधदि ति आसंकाए णि ण्णयविहाणं कुणमाणो पुच्छावक्कमाह * जहा कोहस्स पढमकिट्टि वेदयमाणो चदुण्हं कसायाणं पढमकिट्टीओ बंधदि किमेवं चैव कोधस्स विदियकिट्टि वेदेमाणो चदुण्हं कमायाणं विदियकिट्टीओ बंधदि आहो ण वत्तव्यं । ६६८४ जहा कोहस्स पढमसंगहकिट्टि वेदेमाणो णियमा चदुहं कसायाणं पढमसंगहकिट्टीओ चेव बंधाद किमेवं चेव कोहविदियसंगहकिट्टि वेदेमाणो एसो चदुण्हं कसायाणं विदियसंगहकिट्टि * लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे प्रदेशपुंज लोभको दूसरो और तीसरी संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है। कई लोभको दूसरी संग्रहकृष्टिसे प्रदेशपुंज लोभको तीसरी संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है। ६६८३. ये सूत्र सुगम हैं, इसलिए यहाँपर कुछ व्याख्यान करने योग्य नहीं है। क्रोधको प्रथम संग्रह कृष्टिका वेदन करनेवाले क्षपकको भी यही संक्रम विषयक परिपाटो जाननी चाहिए। इतनी विशेषता है कि क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिसे प्रदेशज क्रोधकी दूसरी और तीसरी संग्रह कृष्टिको तथा मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिको प्राप्त होता है, क्योंकि उससे लेकर संग्रह कृष्टियोंके यथानिर्दिष्ट परिपाटीके अनुसार संक्रमका नियम देखा जाता है। यह अर्थ विशेष संक्रम्यमाण प्रदेशपंजसे निर्वर्त्यमान कृष्टियोंका साधन करनेके लिए प्ररूपित किया हुआ जानना चाहिए। अब क्रोधकी दूसरी संग्रह कृष्टिका वेदन करनेवाला क्षपक जीव क्या सभी कषायोंको दूसरी संग्रह कृष्टियोंको ही बांधता है या क्रोध को दूसरी संग्रह कृष्टियोंके अतिरिक्त शेष कषायोंको प्रथम संग्रह कृष्टिको ही बांधता है ऐसी आशंका होनेपर निर्णयका विधान करते हुए पृच्छा वाक्यको कहते हैं * जिस प्रकार क्रोथको प्रथम संग्रह कृष्टिका वेदन करनेवाला क्षपक जीव चारों कषायोंको प्रथम संग्रह कृष्टियोंको बाँधता है क्या इसी प्रकार क्रोधको दूसरो संग्रह कृष्टिका वेदन करनेवाला क्षपक जीद चारों कषायोंको दूसरो संग्रह कृष्टिको बाँधता है या नहीं बांधता है, कहिए? ६६८४. जिस प्रकार क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टिका वेदन करनेवाला क्षपक जीव नियमसे चारों कषायोंकी प्रथम संग्रह कृष्टियोंको ही बांधता है क्या इसी प्रकार क्रोधको दूसरो संग्रहकृष्टिका वेदन करनेवाला यह क्षपक जोव चारों कषायोंको दूसरी संग्रह कृष्टियोंको ही बांधता है
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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