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________________ २७२ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे णिरवसेस मणुगंतव्यो; विसेसाभावादो त्ति वृत्तं होइ । संपहि एत्थुद्देसे किट्टीसु पदेससंकमो क यदि ति एवस अत्थविसेसस्स निण्णयकरणट्ठमुत्तरो सुत्तपबंधो * एत्थ संकममाणयस्स पदेसग्गस्स विधिं वत्तइस्लामो । ६६७८. कदमादो संगह किट्टोदो पदेसग्गं काय संकमदि, किमविसेसेण सभ्यं सव्वत्थ कमद, आहो अस्थि को वि विसेसनियमो त्ति एदस्स निण्णयविहाणटुमेंत्तो किट्टीसु संकममाणस्स पदेसग्गस्स क्खिवणमेत्थ कस्सामो त्ति पइण्णाववकमेदं । * तं जहा । ६ ६७९. सुगमं । * कोधविदियकट्टीदो पदेसग्गं कोहतदियं च माणपढमं च गच्छदि । $६८०. कोधस्स विदियसंगहकिट्टीदो पवेसग्गं कोधत विय संगहकिट्टीए माणपढम संगह किट्टीए च संकमवि, ण सेसासु । कुदो ? एवम्मि विसये आणुपुथ्वीसंकमवसेण संकममाणस्स तप्पदुप्पायणतप्पसंगावो । वु दो ? तदो कोहविदियकिट्टी अप्पणो तदियकिट्टीए ओकडुणावसेण संकमदि, माणपढमसंगह किट्टीए च अघापवत्तसंकमेण संकमात्र त्ति घेत्तव्वं । * कोइस्स तदियादो किट्टीदो माणस्स पढमं चैव गच्छदि । कोई भेद नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इस स्थल पर कृष्टियों में प्रदेशोंका संक्रम किस प्रकार प्रवृत्त होता है इस प्रकार इस अर्थविशेषका निर्णय करनेके लिए आंगेका सूत्रप्रबन्ध आया है - * आगे यहाँ संक्रम्यमाण प्रवेशपुंजको विधिको बतलावेंगे । $ ६७८. किस संग्रह कृष्टिसे प्रदेशपुंज किस संग्रह कृष्टिमें संक्रमित होता है, क्या सामान्यसे सब सबमें संक्रमित होता है या कोई विशेष नियम है, इस प्रकार इस बात के निर्णयका कथन करनेके लिए आगे कृष्टियोंमें संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजके निष्क्रमणको यहाँपर बतलावेंगे इस प्रकार यह प्रतिज्ञावाक्य है । * वह जैसे । ६ ६७९. यह सूत्र सुगम है । * क्रोधको दूसरी संग्रह कृष्टिसे प्रवेशपुंज क्रोधसंज्वलनकी तीसरी संग्रहकृष्टिमें और मानसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिमें प्राप्त होता है । § ६८०. क्रोधसंज्जलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिसे प्रदेशपुंज क्रोधसंज्वलनकी तीसरी संग्रह - कृष्टिमें और मानसंज्वलन की प्रथम संग्रह कृष्टिमें संक्रमित होता है शेष में नहीं, क्योंकि रसस्थान पर आनुपूर्वी संक्रमके कारण संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजको उसी प्रकारसे व्यवस्थाका प्रसंग प्राप्त होता है, क्योंकि इस कारण क्रोधको दूसरी संग्रह कृष्टि अपकर्षण के कारण अपनी तीसरी संग्रह कृष्टिमें और अधःप्रवृत्त संक्रमके कारण मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिमें संक्रमित होती है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । * क्रोधकी तीसरी संग्रहकृष्टिसे प्रवेशपुंज मानको प्रथम संग्रह कृष्टिको ही प्राप्त होता है।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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