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________________ खवगसेहोए कोहस्स विदियकिट्टीकरणपरूवणा २६९ मोवट्टिन्जमाणस्स वि एदम्मि विसये असंखेज्जवस्सपमाणेणेवावट्ठाणणियमदंसणादो। ठिदिबंधो पुण एदेसि तक्कालभाविओ संखेज्जवस्ससहस्समेत्तो सुगमो त्ति ण तण्णिद्देसो सुत्तयारेण कदो। एवं कोहपढमसंगहकिट्टीए चरिमसमयवेदगभावमणुपालिय एत्तो से काले कोहसंजलणविदियसंगहकिट्टीए वेवगभावेण परिणममाणस्स परूवणापबंधमुरिमचुण्णिसुत्ताणुसारेण वक्खाणयिस्सामो। * से काले कोहस्स विदियकिट्टीए पदेसग्गमोकड्डियूण कोहस्स पढमहिदि करेदि। ६६७२. पुग्विल्लपढमट्टिदीए उच्छिटावलियमेत्तसेसाए पढमसंगहकिट्टीवेदगद्धा समप्पवि। . ताधे चेव कोहस्स विदियसंगहकिट्टीवो पदेसग्गं विदियट्टिवीए समवटिवमोड्डियूण उवयादिगुणसेढीए सगवेवगद्धादो आवलियब्भहियं कादूण पढमट्टिविमेसो कुणदि ति वुत्तं होइ। एवमोकड्डियूण विवियसंगहकिट्टीए पढमद्धिविमुप्पाएमाणस्स तम्मि समये कोहपढमसंगहकिट्टीए किमवसिटुं कि वा विणटुमिवि आसंकाए णिण्णयविहांणद्वमुत्तरसुत्तारंभो * ताधे कोधस्स पढमसंगहकिट्टीए संतकम्मं दो आवलियबंधा दुसमयूणा सेसा, जं च उदयावलियं पविढं तं च सेसं । ६७३. पढमकिट्टीए' दुसमयूणदोआवलियमेत्तणवकबंधपदेसग्गमुच्छिटावलियं च मोत्तण सेसासेसकोहपढमसंगहकिट्टीपदेसगं तत्कालमेव विदियसंगहकिट्टीए उवरि संकेतमिदि भणिवं इस स्थानपर उसके असंख्यात वर्षप्रमाणरूपसे अवस्थानका नियम देखा जाता है। परन्तु इन कर्मोका तत्काल भावो स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता हुआ सुगम है, इसलिए सूत्रकारने उसका निर्देश नहीं किया है। इस प्रकार प्रथम संग्रह कृष्टिक अन्तिम समयमें वेदकभावका अनुपालन करके इससे तदनन्तर समयमें क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिके वेदकभावसे परिणमन करते हुए प्ररूपणाप्रबन्धका उपरिम चूर्णिसूत्रके अनुसार व्याख्यान करेंगे। * तदनन्तर समयमें क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिके प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके क्रोधको प्रथम स्थिति करता है। ६६७२. पहलेके प्रथम स्थितिके उच्छिष्टावलिमात्र शेष रहनेपर प्रथम संग्रह कृष्टिका वेदककाल समाप्त होता है । तथा उसो समय क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिसे, द्वितीय स्थितिमें स्थित प्रदेशजको अपकर्षित कर उदयादि गुणश्रेणिरूपसे अपने वेदककालसे एक आवलि अधिक करके यह क्षपक जीव प्रथम स्थितिको करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस प्रकार षण करके दूसरी संग्रह कृष्टिकी प्रथम स्थितिको उत्पन्न करनेवाले इस क्षपक जीवके उस समय क्रोधसंज्वलनकी प्रथम स्थितिका क्या कुछ भाग अवशिष्ट रहता है या पूरा विनष्ट हो जाता है ऐसी आशंका होनेपर निर्णयका विधान करने के लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं उस समय क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिका सत्कर्म दो समय कम दो आवलिप्रमाण बन्ध शेष रहता है और जो उदयावलि प्रविष्ट द्रव्य है वह शेष रहता है। ६६७३. प्रथम कृष्टिके दो समय कम दो मावलिप्रमाण नवकबन्धसम्बन्धो प्रदेशपंज और उच्छिष्टावलिको छोड़कर क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिका शेष रहा समस्त प्रदेशपुंज तत्काल १. ता प्रतौ पढमकिट्टीए इति पाठः सूत्रांशरूपेणोपलभ्यते ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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