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विषय-सूची
कृष्टिकरणद्धाकी प्ररूपणा
क्रोधवेदगद्धा के तीन भाग करके क्रमसे उनकी
प्ररूपणा
प्रसंगसे अन्य स्थितिबन्ध आदिका निर्देश
पूर्व और अपूर्व स्पर्धकों से कृष्टिकरण विधिका निर्देश
अवयव कृष्टियोंके प्रमाणका निर्देश
प्रथम समय में रची गई कृष्टियोंकी तीव्र-मन्दता सम्बन्धी अल्पबहुत्वका निर्देश
संग्रह कृष्टियोंका निर्देश
कृष्टि अन्तरका निर्देश
इन दोनों कृष्टियों के अल्पबहुत्वका निर्देश प्रथम समय सम्बन्धी कृष्टियों में प्रदेशों सम्बन्धी श्रेणी प्ररूपणाका निर्देश
परंपरोपनिधाकी अपेक्षा श्रेणिप्ररूपणाका निर्देश दृश्यमान द्रव्यकी अपेक्षा उक्त विषयका निर्देश कृष्टि सम्बन्धी ओर स्पर्धक सम्बन्धी गोपुच्छा एक होती है या दो होती है इस विषय में सम्प्रदाय भेदका निर्देश
दूसरे समय में कितनी अपूर्व कृष्टियों की जाती हैं इसका निर्देश
एक-एक संग्रहकृष्टिके नीचे अपूर्व कृष्टियोंके किये जानेकी सूचना
दूसरे समय में दीयमान प्रदेशपुंजकी श्रेणिप्ररूपणा का निर्देश
दूसरे समय में दीयमान प्रदेशपुजकी श्रेणि उष्ट्रकूटश्रेणिके समान होने का निर्देश
इस विधि से सब समयोंमें तेईस उष्ट्रकूट श्रेणियाँ बन जानेका निर्देश
प्रकृतमें दीयमान प्रदेशपुंजसे दृश्यमान प्रदेशपुंज कितना हीन होता है इसका निर्देश प्रकृतमें दोयमान प्रदेशपुंजके अल्पबहुत्वका निर्देश
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कुष्टिकरणके अन्तिम समय में स्थितिबन्धका निर्देश
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प्रकृत में स्थिति सत्कर्म का निर्देश
कृष्टिकारक पूर्व और अपूर्व स्पर्धकोंका वेदन करता है इसका निर्देश
प्रथम स्थिति में एक आवलिकाल शेष रहनेपर कृष्टिकरणकाल समाप्तकर उसके अनन्तर समय में कृष्टियोंको उदयावलिमें प्रवेश कराता है इसका निर्देश
उस समय होनेवाले स्थितिबन्धका निर्देश प्रकृत में क्रोधसंज्वलन के उदयावलि प्रविष्ट सत्कर्मके सर्वघाति होने का निर्देश
उस समय संज्वलनोंके जो नवकबन्ध स्पर्धकगत देशघाति होते हैं उसका निर्देश
इनके अतिरिक्त जो अनुभाग सत्कर्म शेष रहता है उसके दृष्टिगत होनेका निर्देश लम्बी क्रोध संज्वलमकी प्रथम संग्रह कृष्टिके प्रथम स्थिति करनेका निर्देश
इस समय क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका कितना भाग उदीर्ण होता है इसका निर्देश और कितना भाग बँधता है, इसका निर्देश उस समय इसकी दो संग्रह कृष्टियाँ न बंधती हैं और न वेदी जाती हैं इसका निर्देश आगे एतद्विषयक अल्पबहुत्वका निर्देश आगे कृष्टिवेदक कालको स्थगित करके एतद्विषयक गाथा सूत्रोंके निर्देशकी सूचना
प्रथम मूलगाथाका निर्देश
इसमें प्रतिपादित चार अर्थोकी सूचनाके साथ तीन भाष्यगाथाओंके कहने की प्रतिज्ञा प्रथम भाष्यगाथा दो अर्थों में निबद्ध है इसकी सूचनाके साथ उसका निर्देश
प्रत्येक कषायकी कुल संग्रह कृष्टियों और अन्तर कृष्टिय कितनी होती हैं इसका निर्देश क्रोधसे श्रेणि चढ़ने पर १२ संग्रह कृष्टियाँ होती हैं इसका निर्देश
मानसे श्रेणि चढ़ने पर नो संग्रह कृष्टियां होती है इसका निर्देश
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