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बतलाया है कि नोचेको अनुदीर्ण हुई सूक्ष्ममाम्परायिक कृष्टियाँ सबसे थोड़ी हैं। ऊपरको अनुदीर्ण हुई सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियाँ विशेष अधिक हैं। मध्य में उदीर्ण हुई सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिय असंख्यातगुणी है । इस प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर मोहनीयका जो अन्तिम स्थितिकाण्डक है उसके उत्कीर्ण किये जानेपर मोहनीय कर्मका जो गुणश्रेणी निक्षेप है उसके असे संख्यातवें भागको ग्रहण करता है । इस प्रकार उस स्थिति काण्डकके उत्कीर्ण होनेपर उसके बाद मोहनीय कर्मका स्थितिकाण्डकघात नहीं होता । तथा उस समय सूक्ष्मसाम्परायिक जितना काल शेष रहता है मोहनीय कर्मका स्थिति सत्कर्म उतना ही शेष रहता है जो क्रमसे निर्जराका प्राप्त हो जाता है ।