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________________ खवगसैढीए अण्णा परूवणा २२९ ६५७९. केत्तियमेत्तेण ? अंतोमुत्तमेत्तेण। किं कारणं ? समयपबद्धाणं जहण्णणिल्लेवणट्ठाणादो उवरि अंतोमुहुत्तमेत्तीओ द्विदीओ अब्भुस्सरियूण भवबढाणं जहण्णणिल्लेवणट्ठाणसमुप्पत्तिदसणादो। * समयपबद्धस्स कम्मद्विदीए अंतो अणुसमयअवेदगकालो असंखेज्जगुणो। ६५८०. कम्मटुिदिआदिसमयप्पहुडि एगसमयपबद्धस्स पलिदोवमासंखेज्जविभागमेत्त. णिरंतरवेदगकालमुल्लंघियूण पुणो उवरि जत्थ वा तत्थ वा पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तो णिरुद्धसमयपबद्धस्स णिरंतरमवेदगकालो उक्कस्सेण असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणो कम्मट्टिवीए अभंतरे लब्भइ; ओकड्डुक्कडणावसेण णिरंतरमेत्तियमेत्ताणं गिद्धसमयपबद्धपडि. बद्धगोवुच्छाणं सुण्णत्तसणादो। एसो च कालो असंखेज्जपलिवोवमपढमवग्गमूलमत्तो होदूण हेट्ठिमरासीदो असंखेज्जगुणो त्ति घेत्तव्यो। * समयपबद्धस्स कम्मट्टिदीए अंतो अणुसमयवेदगकालो असंखेज्जगुणो। $ ५८१. एवं भणिवे एगसमयम्मि बडो समयपबद्धो बंधावलियादिक्कतपढमसमयप्पहुडि पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तकालं पिरंतरमुदयमागच्छवि जाव जिरंतरवेदगकालचरिम. समबो त्ति । एसो कालो अणुसमयवेदगकालो ति भण्णवे। एसोच पुग्विल्लकालादो असंखेज्ज. ६५७९. शंका-कितने अधिक हैं ? समाधान-अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अधिक हैं। शंका-इसका क्या कारण है? समाधान-क्योंकि समयप्रबद्धोंके जघन्य निर्लेपनस्थानसे ऊपर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितियां सरककर भवबद्धोंके जघन्य निर्लेपनस्थानोंकी उत्पत्ति देखी जाती है। * कर्मस्थितिके भीतर समयप्रबद्धका अनुसमय अवेदककाल असंख्यातगुणा है। ६५८०. कर्मस्थितिके प्रथम समयसे लेकर एक समयप्रबद्धके पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण निरन्तर वेदककालका उल्लंघन कर ऊपर यहाँ अथवा वहाँ पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण विवक्षित समयप्रबद्धका निरन्तर अवेदककाल उत्कृष्टसे असंख्यात पल्योपमके प्रथम वर्गमूलप्रमाण कमंस्थितिके भीतर प्राप्त होता है, क्योंकि उत्कर्षण और अपकर्षणके वशसे निरन्तर इयत्प्रमाण विवक्षित समयप्रबद्धसे सम्बद्ध गोपुच्छाओंका शून्यपना देखा जाता है। और यह काल असंख्यात पल्योपमके प्रथम वर्गमूलप्रमाण होकर अधस्तन राशिसे असंख्यातगुणा होता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। * समयप्रबद्धका कमस्थितिके भीतर अनुसमय वेदककाल असंख्यातगुणा है। ६५८१. इस प्रकार कहनेपर एक समयमें बद्ध समयप्रबद्ध बन्धावलिके अनन्तर प्रथम समयसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भागरूप कालप्रमाण निरन्तर वेदककालके अन्तिम समय तक निरन्तर उदयको प्राप्त होता है। इस कालको अनुसमय वेदककाल कहते हैं। और यह काल पिछले कालकी अपेक्षा असंख्यातगुणा है, क्योंकि दोनों कालोंके सामान्यसे असंख्यात पल्योपमके
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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