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________________ ( २४) गया है। आगे श्रेणिप्ररूपणाका कथन करते हुए बतलाया है कि अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिसे बादरसाम्परायिक कृष्टिमें दिया जानेवाला प्रदेशपुंज असंख्यातगुणा हीन होता है । उसके बाद सर्वत्र विशेष हीन द्रव्य देता है। दूसरे समयोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंको करनेवाला क्षपक असंख्यातगुणी हीन सुक्ष्भसाम्परायिक कृष्टियोंको करता है। उन्हें प्रथम समयमें की गई कृष्टियोंके नीचे करता है और अन्तराल में करता है । नीचे की गई कृष्टियोंसे अन्तरालमें असंख्यातगुणी कृष्टियोंको करता है । जो दूसरे समय में जघन्य सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि है उसमें बहुत प्रदेशपुंज देता है। दूसरी कृष्टिमें अनन्तभागहीन प्रदेशपुंज देता है । इस प्रकार जाकर प्रथम समयमें जो जघन्य सूक्ष्मसाम्पराधिक कृष्टि है उसमें असंख्यात भागहीन द्रव्यको देता है। उसके आगे निर्वर्त्यमान अपूर्व कृष्टिके प्राप्त होनेतक अनन्तभागहीन द्रव्य देता है। तथा निर्वर्त्यमान अपूर्व कृष्टि में असंख्यात भाग अधिक द्रव्य देता है । पहले निर्वतित कष्टिमें प्रतिपद्यमान प्रदेशपुंज असंख्यात भागहीन होता है। आगे अनन्तभागहीन जानना चाहिये। दूसरे समय में दिये जानेवाले प्रदेशपुंजको जो विधि बतलाई है वही विधि बादरसाम्परायिकके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक दिये जानेवाले द्रव्यको सब समयोंमें जाननी चाहिये। आगे इसके वष्टियोंमें दिखने वाले प्रदेशपुंजको प्ररूपणा आदि करके लोभकी अन्तिम बादरसाम्परायिक कृष्टिमेंसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें जो प्रदेशपुंज संक्रमित होता है वह सबसे थोड़ा है। लोभकी दूसरी कृष्टिमेंसे अन्तिम बादर साम्परायिक कृष्टिमें जो प्रदेशपुंज संक्रमित होता है वह संख्यातगुणा हैं । लोभकी दूसरी कृष्टिमेंसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि में जो द्रव्य संक्रमित होता है यह संख्यातगुणा है । कृष्टिवेदकके प्रथम समयमें क्रोधको दूसरी कृष्टिमेंसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह सबसे थोड़ा है । क्रोधकी तीसरी कृष्टि मेंसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टि में जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। मानकी प्रथम कृष्टिमेंसे मायाको प्रथम कृष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। मानकी दूसरी संग्रह कृष्टिमेंसे मायाकी प्रथम संग्रह कृष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। मानकी तीसरी संग्रह कृष्टिमेंसे मायाकी प्रथम संग्रह कष्टियोंमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। मायाको प्रथम संग्रहकृष्टिमेंसे लोभकी प्रथम संग्रहकुष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है । मायाको दूसरी संग्रह कृष्टिमेंसे लोभको प्रथम संग्रहकृष्टि में जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। मायाकी तीसरी संग्रहकष्टिमेंसे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। लोगकी ही प्रथम संग्रहकष्टिमेंसे लोभकी दूसरी संग्रह कृष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। लोभकी ही प्रथम संग्रह कृष्टिमेंसे उसीकी तीसरी संग्रहकृष्टि में जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक है। क्रोधकी प्रथम संग्रहकष्टिमेंसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टि में जो द्रव्य संक्रमित होता है वह संख्यातगुणा है। क्रोधकी ही प्रथम संग्रह कृष्टिमेंसे क्रोधकी ही तीसरी संहकृष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह विशेष अधिक होता है । क्रोधको ही प्रथम संग्रह कृष्टिमेसे क्रोधकी ही दूसरी संग्रहकृष्टिमें जो द्रव्य संक्रमित होता है वह संख्यातगुणा होता है । यह प्रदेशसंक्रम यद्यपि पहले आ चुका है, परन्तु सूक्ष्मसाम्परायिक कृप्टियोंका आधार होनेसे यहां कहा गया है । . सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें प्रथम समयमें जो द्रव्य दिया जाता है वह सबसे थोड़ा है । दूसरे समयसे लेकर अन्तिम समय तक उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा द्रव्य दिया जाता है। इस क्रमसे लोभकी दूसरी संग्रह कृष्टिका वेदन करनेवाले क्षपकके जब प्रथम स्थिति में एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रह जाता है तब वह क्षपक अन्तिम समावर्ती बादर साम्परायिक होता है। और उसी समय लोभकी अन्तिम समयवर्ती बादर साम्परायिक कृष्टि संक्रमित होती हुई संक्रमित हो जाती है। तथा लोभकी दूसरी
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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