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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पिल्लेवणद्वाणं होदित्ति पडिवज्जेयव्वं । जम्हि चेव समए भवबद्धस्स पढमसमयपबद्धो जिल्लेविवो तम्हि चेव समए सेससमयपबद्धाणं अंतोमहत्ताणमक्कमेण पिल्लेवणा किण्ण जायदे ? ण, तेसि जहण्णणिल्लेवणद्वाणस्स समयुत्तरकमेणावद्विदस्त अक्कमवृत्तिविरोहादो । एसो अत्यो एगट्ठिदिविसेसे असंखेज्जाणि समयपबद्धसेसाणि अस्थि त्ति एदेण सह किण्ण विरुज्झदित्ति भणिदे ण विरुज्झदे । तं कथं ? निरुद्वेगसमयपबद्धस्स जहण्ण णिल्लेवणटुणबभूव द्विदिविसे से अण्णेगसमयपबद्धस्स कम्मद्विदीए समत्ताए तमेगं समयपबद्धसेसयं भवदि । पुणो तुम्मि चेव द्विदिविसेसे अण्णेगसमयपबद्ध कम्म ट्ठिदिदुचरिमसमये संजावे तत्थ तस्स पिल्लेवणसंभववसेण तमेगं समयपबद्ध से सयमुवलभदे । पुणो तम्मि चेव द्विदिविसेसे कम्मट्ठदितिचरिमसमयपत्तं पि समयपबद्धसेसयं तक्काल पिल्लेवणपाओग्गमत्थि । एवं गंतूण जाव जहण्णणिल्लेवणट्टाणावो समयुत्तर द्विदिपत्तम वि कम्मट्ठदिसमयपबद्धसेसयं तम्हि चेव द्विदिविसेसे अस्थि त्ति वत्तव्वं । तेण एक्कम्मि ठिदिविसेसे असंखेज्जाणं समयपबद्धाणं सेसाणमत्थित्तोवएसेण णेदं विरुज्झदे; णिल्लेवणद्वाणमेत्ताणं चेव समयपबद्ध सेसाणं तत्थ सेचियभावेण संभवोवलंभादो । जइ वि एत्तियमेत्ताणमक्कमेण पिल्लेवणद्वाणसंभवो णत्थि तो वि णियमा असंखेज्जाणं समयपबद्धाणं तप्पाओग्गाणं सेसयाणि तत्थ संभवंति २१२ समयप्रबंद्ध के जघन्य निर्लेपनस्थानसे ऊपर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितियाँ वास्तव में आगे जाकर भवबद्धका जघन्य निर्लेपनस्थान होता है ऐसा निश्चय करना चाहिए । शंका - जिस ही समय भवबद्धका प्रथम समयप्रबद्ध निर्लेपित हुआ उसी समय अन्तर्मुहूर्तप्रमाण शेष समयप्रबद्धोंकी अक्रमसे निर्लेपना क्यों नहीं हो जाती ? समाधान- नहीं, क्योंकि उनका जघन्य निर्लेपनस्थान एक-एक समय अधिक के क्रमसे अवस्थित है, अतः उसकी अक्रमसे वृत्ति ( प्राप्ति ) होने में विरोध आता है । शंका- यह अर्थ एक स्थितिविशेष में असंख्यात समयप्रबद्धशेष पाये जाते हैं इस प्रकार इसके साथ विरोधको क्यों नहीं प्राप्त होता है ? समाधान - ऐसी शंका करनेपर कहते हैं कि विरोधको नहीं प्राप्त होता है । शंका-सो कैसे ? समाधान - विवक्षित एक समय प्रबद्धके जघन्य निर्लेपनस्थानभूत स्थितिविशेषमें अन्य एक समयबद्धकी कर्मस्थितिके समाप्त होनेपर वह एक समयप्रबद्धशेष होता है । पुन: उसी स्थितिविशेष में अन्य एक समयप्रबद्ध की स्थितिके द्विचरम समय हो जानेपर वहाँपर उसका निर्लेपनस्थान प्राप्त होने के योग्य होने से वह एक अन्य समयप्रबद्धशेष उपलब्ध होता है । पुनः उसी स्थितिविशेष में कर्मस्थितिका त्रिचरम समय प्राप्त हुआ, इसलिए समयप्रबद्धशेष उस समय निर्लेपन के योग्य होता है। इस प्रकार आगे तबतक जाना चाहिए जब जाकर उसी स्थितिविशेष में जघन्य निर्लेपनस्थान से क्रमसे एक-एक समय अधिक, कर्मस्थितिसम्बन्धी, समयप्रबद्धशेष पाया जाता है ऐसा कहना चाहिए । इस कारण एक स्थितिविशेष में असंख्यात समयप्रबद्धशेषों के अस्तित्वका उपदेश होनेसे यह कथन विरोधको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि जितने निर्लेपनस्थान हैं उतने ही समयबद्धशेषोंका वहाँपर सिचितरूपसे पाया जाना सम्भव है । यद्यपि इतने निर्लेपनस्थान वहाँपर अक्रमसे सम्भव नहीं हैं. तो भी तत्प्रायोग्य असंख्यात समयप्रबद्ध शेषरूप से वहाँपर सम्भव
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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