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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे संभवंति ति । एवमेवीए सव्वमग्गणाए सवित्थरमणुमग्गिदाए तदो चउत्थीए भासगाहाए अत्थविहासा समप्पदि । तोच अट्टमीए मूलगाहाए अत्थविहासा अभवसिद्धियपाओग्गविसये समप्पदि त्ति जाणावणटुमुवसंहारवक्कमाह
* एवं चउत्थीए गाहाए अत्थो समत्तो भवदि । * अट्ठमीए मूलगाहाए विहासा समत्ता भवदि। * इमा अण्णा अभवसिद्धियपाओग्गे परूवणा ।
5 ५४०. चदुहिं भासगाहाहिं अट्ठममूलगाहाए अत्थे भवाभवसिद्धियपाओग्गविसये सवित्थरं विहासिय समत्ते पुणो किमट्टमेसा अण्णा परूवणा अब्भवसिद्धियपाओग्गविसये आढविज्जदे ? ण, पुव्वुत्तत्थस्सेव चूलियाभावेण तत्थेव सुत्तसूचिदविसे संतरपदंसण?मेदिस्से परूवणाए अवयारब्भुवगमादो। तं कधं ? अभवसिद्धियपाओग्गे पिल्लेवणटाणाणं पमाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तं होदि त्ति भणिदं । संपहि जत्थेव समयपबद्धाणं जहण्णणिल्लेवणट्टाणं किं तत्थेव भवबद्धाणं जहण्णणिल्लेवणट्टाणं होइ आहो ण होइ त्ति ण एसो विसेसो तत्थ जाणाविदो, एवमण्णो वि विसेसो. तत्थ परूविदो अस्थि, तदो तप्परूवणट्ठमेत्तो उवरिमो चुण्णिसत्तपबंधो समोइगो त्ति घेत्तत्वं ।
इस प्रकार इस विधिसे इस पूरी मार्गणाके विस्तारके साथ अनुसन्धान करनेपर इसके बाद चौथी भाष्यगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त होती है। और तदनन्तर अभवसिद्धिक जीवोंके प्रायोग्य विषयमें आठवीं मूलगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त होती है इस बातका ज्ञान करानेके लिए उपसंहार वाक्यको कहते हैं
* इस प्रकार चौथी भाष्यगाथाका अर्थ समाप्त हुआ। के और इसके साथ आठवीं मूलगाथाकी विभाषा समाप्त होती है। * अब अभवसिद्धिक जीवोंके योग्य विषयमें यह अन्य प्ररूपणा की जाती है।
६५४०. शंका-चार भाष्यगाथाओं द्वारा आठवीं मूलगाथाके अर्थको भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक जीवोंके योग्य विषयमें विस्तारके साथ विभाषाके समाप्त होनेपर पुनः अभवसिद्धिक जीवोंके विषयमें यह अन्य प्ररूपणा किस लिए आरम्भ करते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि पूर्वोक्त अर्थका ही चूलिकारूपसे वहीं सूत्रमें सूचित हुए विशेष अन्तरके दिखलानेके लिए इस प्ररूपणाका अवतार स्वीकार किया जाता है।
शंका-वह कैसे?
समाधान-अभवसिद्धिक योग्य निर्लेपनस्थानोंका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है यह कहा गया है। अब जहाँपर समयप्रबद्धोंका जघन्य निर्लेपनस्थान होता है वहींपर क्या भवबद्धोंका जघन्य निर्लेपनस्थान होता है या नहीं होता है इस प्रकार इस विशेषका वहां ज्ञान नहीं कराया गया है। इसी प्रकार अन्य भी विशेष वहाँपर कहा गया है, इसलिए उसकी प्ररूपणा करनेके लिए यहाँ उपरिम चूर्णिसूत्रप्रबन्ध अवतीर्ण हुआ है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए।