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________________ १९२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पिणिल्लेवणट्ठाणांण मेसो पमाणाणुगमो कायव्वो; एदम्मि उवदेसे अवलंविज्जमाणे पयारंतरासंभवादो। एसो च अपवाइज्जमागोवएसो णाम बहुएहि आइरिएहि अणभिमयत्तादो। संपहि पवाइज्जतोवएसमस्सियूण णिल्लेवणट्ठाणाणं पमाणविसेसावहारण?मुत्तरसुत्तमाह * एक्केण उवएसेण पलिदोवमस्स असंखेन्जदिभागो। ३५०२. एक्केण उवएसेण पवाइज्जमाणेण उवएसेण पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्ताणि णिल्लेवणट्ठाणाणि होति ति सुत्तत्थसंबंधो। कुवो वुण एक्स्स उवएसस्स पवाइज्जमाणत्तमवगम्मदे ? उवरिमचुण्णिसुत्तणिद्देसादो। एक्स्स भावत्थो-कम्मदिदीए आदिसमयम्मि जो बद्धो समयपबद्धो सो बंधसमयप्पहुडि जाव कम्मदिदीए असंखेज्जा भागा गच्छंति ताव णिच्छयेण अच्छियूण तदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तकम्मट्टिदिसेसे तम्हि सेसे अपरिसेस. मुदयं कादण सुद्धं पिल्लेविज्जदि, तेण तमेगं पिल्लेवणट्टाणं जादं । अधवा तदुवरिमसमयम्मि हिस्सेसमुदयं कादूण गच्छदि ति तं विदियं पिल्लेवणटाणं होइ। एवं समयुत्तरकमेण पिल्लें. वटाणाणि गच्छंति जाव कम्मट्टिदिचरिमसमओ ति । तेण पलिदोवमस्स असंखेज्जविभाग. मेत्ताणि णिल्लेवणटाणाणि पवाइज्जमाणोंवएसमस्सियूण लग्भंति ति घेत्तव्वं। संपहि एदस्सेवत्थस्त फुडीकरण?मुत्तरसुत्तणिद्देसो ___ * जो पवाइज्जइ उवएसो तेण उवदेसेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागो असंखज्जाणि वग्गमूलाणि पिल्लेवणट्ठाणाणि । होते हैं ऐसा कहना चाहिए। इसी प्रकार भवबद्धोंके भी निर्लेपनस्थानोंका यह प्रमाणानुगम करना चाहिए, क्योंकि इस उपदेशका अवलम्बन करनेपर अन्य प्रकार सम्भव नहीं है। यह अप्रवाह्यमान उपदेश है, क्योंकि यह बहुत आचार्योंके द्वारा सम्मत नहीं है। अब प्रवाह्यमान उपदेशका आश्रय लेकर निर्लेपनस्थानोंके प्रमाणविशेषका अवधारण करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं एक उपदेशके अनुसार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थान होते हैं। $ ५०२. 'एक्केण उवएसेण' अर्थात् प्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थान होते हैं यह इस सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है। शंका-यह उपदेश प्रवाह्यमान है यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-आगे चूर्णिसूत्रके निर्देशसे जाना जाता है कि यह उपदेश प्रवाह्यमान है। इस सूत्रका भावार्थ-कर्मस्थितिके प्रथम समयमें जो समयप्रबद्ध बंधता है वह बन्धसमयसे लेकर कर्मस्थितिके असंख्यात बहुभाग जाने तक नियमसे अवस्थित रहकर पश्चात् पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कर्मस्थितिके शेष रहनेपर उस शेष समयमें पूरा उदयको प्राप्त होकर पूरी तरहसे निर्लेपनको प्राप्त हो जाता है। इस कारण वह इस प्रकार निर्लेपनस्थान हो जाता है। अथवा उससे अगले समयमें पूरी तरहसे उदयको प्राप्त हो जाता है, इसलिए वह दूसरा निलेपनस्थान हो जाता है । इस प्रकार एक-एक समय अधिकके क्रमसे निर्लेपनस्थान कस्थितिके अन्तिम समय तक प्राप्त होते जाते हैं । इस कारण प्रवाहमान उपदेशके अनुसार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण निलेपनस्थान प्राप्त होते हैं ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए। अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिए आगेके सूत्रका निर्देश करते हैं जो प्रवाहमान उपदेश है उस उपदेशके अनुसार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थान होते हैं । जिनका प्रमाण असंख्यात वर्गमूलप्रमाण है।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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