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________________ षयषवलासहिदे कसायपाहु. परमाणुआदिकमेण जावुक्कस्सेणाणंता परमाणू सेसयं होदूणच्छणं लहदि । पुणो एवं द्विद. कम्मपरमाणू एगपरमाणुणा वि अपरिसेसो होदूण ओकड्डिय से काले उदयट्टिदीए संछुहणपाओग्गभावेणेण्हिमुवलब्भमाणा तस्स समयपबद्धस्स सेसयमिदि भण्णते, तत्तो परं णिरुद्धसमयपबद्धस्स एक्केण वि परमाणुणा विणा णिल्लेवणदंसणादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसब्भावो। एवमेदेण सुत्तेण समयपबद्धसेसस्स सख्वणिद्देसं कादूण संपहि भवबद्धसेसगस्स वि एवं चेव सरूवपरूवणा कायव्वा त्ति जाणावेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ * एवं चेव भवबद्धसेसयं । ६४४५. जहा समयपबद्धसेसयं तहा चेव भवबद्धसेसयं पिस्टव्वं, से काले ओकडणवसेण उदयट्टिदीए णिल्लेविज्जमाणत्तं पडि विसेसाणुवलंभादो त्ति वुत्तं होदि। गवरि समयपबद्धसेसयं णाम एगसमयपबद्धकम्पपरमाणू घेतूण भवदि । भवबद्धसेसयं पुण जहण्णदो वि अंतोमुहुत. मेत्ताणं समयपबद्धाणमेगभवपडिबद्धाणं कम्मपरमाणू जहासंभवमुवलब्भमाणे घेतूण होदि त्ति वत्तवं। * एदीए सण्णापरूवणाए पढमाए भासगाहाए विहासा। $ ४४६. एवीए अणंतरणिहिट्ठाए सण्णापरूवणाए णिण्णोदसरूवाणं समयपवद्धसेसाणं भवबद्धसेसाणं च एगम्मि द्विदिविसेसे वट्टमाणाणमियत्तावहारणटुं तवणुभागविसेसगवेसणटुं च पढम. भासगाहाए विहासा एण्हिमवयारिज्जदि ति वृत्तं द्रोह। न रहकर अन्यतर एक स्थितिविशेषमें ही एक, दो या तीन परमाणु आदिके क्रमसे लेकर उत्कृष्टरूपसे अनन्त परमाणु शेष होकर अवस्थित रहते हैं। पुनः इस प्रकारसे अवस्थित परमाणुओंको, एक भी परमाण शेष न रहे इस रूपसे, अपकर्षित करके तदनन्तर समयमें उदयस्थिति में निक्षेपके योग्यरूपसे इस समय उपलभ्यमान होनेका नाम उस समयप्रबद्धका शेष कहा जाता है, क्योंकि उसके बाद विवक्षित समय प्रबद्धका एक भी परमाणुके बिना निर्लेपन देखा जाता है यह इस सूत्रका समुच्चय रूप अर्थ है । इस प्रकार इस सूत्र द्वारा समयप्रबद्धशेषके स्वरूपका निर्देश करके अब भवबद्धशेषका भी इसी प्रकार स्वरूप कथन करना चाहिए इस बातका ज्ञान कराते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं * इसी प्रकार भवबद्धशेषके स्वरूपका कथन करना चाहिए। ६४४५. जिस प्रकार समयप्रबद्धशेषका स्वरूप कहा उसी प्रकार भवबद्धशेषका स्वरूप भी जानना चाहिए, क्योंकि तदनन्तर समयमें अपकर्षणके वशसे उदयस्थितिमें निर्लेपित होनेवालेके प्रति उससे इसमें विशेषता उपलब्ध नहीं होती यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इतनी विशेषता है कि एक समयप्रबद्ध के परमाणुओंको ग्रहण करके समयप्रबद्धशेष होता है। परन्तु भवबद्धशेष एक भवसम्बन्धी जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण समयप्रबद्धोंके यथासम्भव उपलभ्यमान कर्मपरमाणुओंको ग्रहण करके प्राप्त होता है ऐसा यहां कहना चाहिए। * अब इस संज्ञा प्ररूपणाके द्वारा प्रथम भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं। ६४४६. अब अनन्तर पूर्व कही गयी इस संज्ञा प्ररूपणाके द्वारा जिनके स्वरूपका निर्णय कर लिया है ऐसे एक स्थितिविशेषमें विद्यमान समयप्रबद्धशेष और भवबद्धशेषके प्रमाणका अवधारण करने के लिए तथा उनके अनुभाग विशेषको गवेषणा करनेके लिए इस समय प्रथम । भाष्यगाथाकी विभाषा की जाती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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