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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
६३०९ तहा केत्तिएसु भवेसु संचिदाणि पुन्वबद्धाणि कम्माणि एवस्स खवगस्स संभवति, किमेक्कहि भवग्गहणे, आहो दोसु तिसु चसु संखेज्जेसु असंखेज्जेसु वा त्ति एसो विदिओ पुच्छाणिद्देसो । काईदियमग्गणापडिबद्धेसु भवग्गहणेसु पुव्वबद्धाणं कम्माणं परूवणाए डिबद्धो । द्विदि- अणुभागेस वा केलिएस पवबद्वाणि कम्माणि एवस्स खवगस्स किट्टीकरणप्पहडि safeमावत्या वट्टमास संभवंति त्ति एसो तदिओ पृच्छाणिसो । एवेण किमूक्कल्स द्विदीए कस्साणभागेण च सह बद्धाणि कम्माणि एवस्स संभवंति आहो अणुक्कस्स द्विदि- अणुभागे ह सहबद्धाणि ति एवं विहो अत्यणिसो सूचिदो दटुव्वो ।
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६३१०. केत्तियमेसेंस वा कसाएस पुण्यबद्धा कम्मपरमाणवो एक्स्स वोसंति, किमेवक म्ह बोसु तिस चदस् वा त्ति एसो चउत्यो पच्छाणिहेंसो | एवेण कसायमग्गणम स्सियूण पुव्वद्वाणं संभवासंभवादिणिण्णयपरूवणा सुचिवा वटुव्वा । एत्थ वि कोह-माण-माया-लोभाणमेगदु-ति-चद्रसंजोगे पण्णारसपण्हभंगा अणुगंतव्या । एसो च सव्वो पुच्छा णिद्देसो गवि इंदिय कायमग्गणावयवे द्विदि- अणुभागवियप्पेस कसायभेदेसु च पुण्यबद्धाणं कम्माणं भयगिज्जाभणिज्जसरुवेण संभवतदियत्तावहारणं च उवेक्खदे । सब्वेस च पुच्छाणिद्द सेस 'कम्माणि पुव्वबद्धाणि' त्ति एसो सुत्तावयवो पादेवकमभिसंबंधणिज्जो ।
६३०९. उसी प्रकार कितने भवों में संचित हुए पर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके सम्भव हैं। क्या एक भवग्रहण में या दो भवों में, तीन भवोंमें, चार भवोंमें या संख्यात और असंख्यात भवोंमें संचित हुए पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके सम्भव है इस प्रकार यह दूसरा पृच्छानिर्देश है। कोन काय और इन्द्रियमार्गणासम्बन्धी भवग्रहणों में संचित पूर्वबद्ध कर्मोंको प्ररूपणा इस क्षपकके है। तथा कितनी स्थितियों और अनुभागों में संचित पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके कृष्टिकरणसे लेकर उपरिम अवस्थामें विद्यमान जीवके सम्भव है इस प्रकार यह तीसरा पृच्छानिर्देश है । इससे क्या उत्कृष्ट स्थिति और उत्कृष्ट अनुभागरूपसे बद्ध कर्म इस क्षपकके सम्भव हैं या अनुत्कृष्ट स्थिति और अनुत्कृष्ट अनुभाग रूपसे बद्ध कर्म इस क्षपकके सम्भव हैं इस प्रकारका अर्थनिर्देश सूचित जानना चाहिए।
विशेषार्थं - यहाँ कितनी गतियों और कितने भवों आदिको आलम्बन बनाकर कृष्टिकारक कृष्टिवेक जीव कितनी स्थिति से युक्त, कितने अनुभागसे युक्त और कितने प्रदेशोंसे युक्त पूर्वबद्ध कर्म पाये जाते हैं। इस विषय में क्या सम्भव है यह पृच्छा की गयी है ऐसा यहाँ समझना चाहिए
$ ३१०. अथवा कितनी कषायोंमें संचित पूर्वबद्ध कर्मपरमाणु इस जीवके दिखाई देते हैं। एक कषायमें, दो कषायोंमें, तीन कषायों में या चार कषायों में संचित पूर्वबद्ध कर्म इस जीव के दिखाई देते हैं इस प्रकार यह चौथा पृच्छानिर्देश है। इससे कषायमार्गणाका आलम्बन लेकर इस जीव के पूर्वबद्ध कर्मो के सम्भव मोर असम्भव आदिके निर्णयविषयक प्ररूपणा सूचित की गयी जाननी चाहिए । यहाँ पर भी क्रोध, मान, माया और लोभके एकसंयोग, द्विसंयोग, तीनसंयोग और चारसंयोगसे पन्द्रह भंग जानने चाहिए। यह समस्त पृच्छानिर्देश गति, इन्द्रिय और कायमार्गणाके भेदों में और कषायमार्गणाके भेदोंमें स्थिति और अनुभाग के विकल्पोंकी अपेक्षा पूर्वबद्ध कर्मो के भजनीय और अभजनीयपनेरूपसे सम्भव और असम्भवके अवधारणाकी अपेक्षा रखता है । अतः समस्त पृच्छाओंके कथनमें 'कम्माणि पुव्वबद्धाणि' इस सूत्रवचनका प्रत्येकके साथ सम्बन्ध कर लेना चाहिए ।