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________________ खवगसेढोए तदियमूलगाहाए तदियत्थे पंचमभासगाहा १०७ कस्सामो।तंजहा-'उदयादिसु ट्ठिदोसु य०' एवं भणिवे उदयप्पहुडि जहाकममवट्ठिदासु पढमट्ठिवीए अवयवदिदीसु जं दध्वमुददिदीए एण्हिमुवलन्भइ तं "णियमसा दु' णिच्छयेणेव हरस्सं थोवयरं होवि, वट्टमाणसमए जं पदेसग्गमुदिण्णं तं सव्वत्योवमिवि वुत्तं होदि। 'पविसवि ट्ठिदिक्खएण दु' एवं मणिदे उदयट्टिदीदो उवरिमाणंतरदिदीए जं पदेसग्गं से काले ठिदिक्खएण उदयं पविसवि तं 'गुणेण गणणादियंतेण' असंखेज्जगुणसहवेण पविसदि त्ति भणिवं होवि, असंखेज्जगुणकमेणावढिवगुणसेढिगोवुच्छाओ वेदेमाणस्स पमाणंतरासंभवादो। एवंविहो च एविस्से गाहाए अवयवत्य. परामरसो सुगमो ति समुदायत्थमेव विहासेमाणो विहासागंथमुत्तरं भणइ * विहासा। ६२८९. सुगमं। * तं जहा। 5२९०. सुगमं। * जं अस्सि समए उदिण्णं पदेसग्गं तं थोवं । 5 २९१. वट्टमाणसमए उदयटिदिम्मि जं दिस्सदि पदेसगं तं सवत्योवमिवि वुत्तं होदि । * से काले द्विदिक्खएण उदयं पविसदि पदेसग्गं तमसंखेज्जगुणं । अब इस भाष्यगाथाके अवयवोंके अर्थका प्ररूपण करेंगे। वह जैसे-'उदयादिसु दिदीसु य०' ऐसा कहनेपर उदयसे लेकर प्रथम स्थितिसम्बन्धी क्रमसे अवस्थित अवयव स्थितियों मेंसे जो द्रव्य उदयस्थितिमें इस समय उपलब्ध होता है वह "णियमसा दु' निश्चयसे ही 'हरस्स' स्तोकतर होता है । वर्तमान समयमें जो द्रव्य उदीर्ण होता है वह सबसे थोड़ा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। 'पविसदि टिदिक्खएण दु' ऐसा कहनेपर उदयस्थितिसे उपरिम अनन्तर स्थितिका जो प्रदेशपुंज तदनन्तर समय में स्थितिक्षयसे उदयमें प्रवेश करता है वह 'गुणेण गणणादियंतेण' असंख्यात गुणितस्वरूपसे प्रवेश करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि असंख्यातगुणित क्रमसे अवस्थित गुणश्रेणि गोपुच्छाओंका वेदन करनेवालेके अन्य प्रकार सम्भव नहीं है। और इस भाष्यगाथाका इस प्रकारका अवयवार्थपरामर्श सुगम है, इसलिए समुदायार्थकी ही विभाषा करते हुए आगेके विभाषा ग्रन्थको कहते हैं * अब इस भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। 5२८९. यह सूत्र सुगम है। वह जैसे। 5२९०. यह सूत्र सुगम है। * इस समय जो प्रदेशपुंज उदीर्ण होता है वह सबसे स्तोक है। 5२९१. वर्तमान समयमें जो प्रदेशपुंज उदयमें दिखाई देता है वह सबसे स्तोक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। ____अगले समयमें स्थितिक्षयसे जो प्रवेशपुंज उवयमें प्रवेश करता है वह असंख्यातगुणा होता है।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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