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खवगसेढोए तदियमूलागाहाए चउत्थभासगाहा ६ २२७. संपहि एवंविहमेदिस्से गाहाए समुदायत्थं विहासेमाणो उपरिमं सुत्तपबंधमाह - * विहासा । ६२२८. सुगम। * एदीए गाहाए परंपरोवणिधाए सेढीए भणिदं होदि ।
$ २२९. एदोए चउत्थभासगाहाए किट्टोगदवग्गणासु परंपरोवणिपाए सेढीए पदेसग्गस्स होणाहियत्तं भणिदं होदि ति सुत्तत्थसंबंधो । एवमेदिस्से गाहाए परंपरोवणिधाए पडिबद्धत्तमेदेण जाणाविय संपहि तिस्से चेव परंपरोवणिधाए परूवणा एवंविहा होवि त्ति विहासण?मुत्तरसुत्तं भणइ
* कोहस्स जहणियादो वग्गणादो उक्कस्सियाए वग्गणाए पदेसग्गं विसेसहीणमणंतभागेण ।
$ २३०. गयत्थमेदं सुतं । एवं ताव कोहसंजलणस्स परंपरोवणिधापरूवणमेदेण गाहासुत्तेण विहासिय संपहि माणादिसंजलणाणं पि एवं चेव परंपरोवणिधा परूवेयव्या ति जाणावणटुं पंचमीए भासगाहाए अवयारो कीरदे
* एत्तो पंचमीए मासगाहाए समुक्कित्तणा । ६२३१. सुगमं।
६२२७. अब इस गाथाके इस प्रकार समुदायरूप अर्थकी विभाषा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अब इस चौथी भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं। 5२२८. यह सूत्र सुगम है।
* इस भाष्यगाथा द्वारा परम्परोपनिधारूप श्रेणिकी अपेक्षा प्रदेशजको होनाधिकता कही गयी है।
२२९. इस चौथी भाष्यगाथा द्वारा कृष्टिगत वर्गणाओंमें परम्परोपनिधारूप श्रेणिको अपेक्षा प्रदेशपंजकी होनाधिकता कही गयो है यह इस सूत्रका अर्थ के साथ सम्बन्ध है। इस प्रकार यह गाथा परम्परोपनिधासे प्रतिबद्ध है इसका इस कथन द्वारा ज्ञान कराकर अब उसी परम्परोपनिघाकी प्ररूपणा इस प्रकार होती है इस बातको विभाषा करने के लिए आगेके सूत्रको कहते हैं
* क्रोध संज्वलनकी जघन्य वर्गणासे उत्कृष्ट वर्गणाका प्रदेशज अनन्तवें भागरूपसे विशेष होन होता है।
६२३०. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार सर्वप्रथम क्रोध संज्वलनसम्बन्धी परम्परोपनिधाकी प्ररूपणाका इस गाथासूत्र द्वारा विशेषरूपसे कथन कर अब मानादि संज्वलनोंको भी परम्परोपनिधका इसी प्रकार कथन करना चाहिए इस बातका ज्ञान करानेके लिए पांचवीं भाष्यगाथाका अवतार करते हैं
* अब आगे पांचवीं भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं। 5२३१. यह सूत्र सुगम है।