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________________ खवगढीए पढममूलगाहाए तदियमा सगाहा * कोहस्स पढमाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं संखेज्जगुणं । $ २१०. तेरसगुणमेत्त मिदि वृत्तं होंदि । कुदो ? णोकसायसव्वदध्वेण सहकसायदव्यबारसमभागस्त को हपढमसंगह किट्टीसख्वेण परिणदत्तादो। एवमेत्तिएण पबंधेण पढमभासगाहाए अत्यविहासणं का संपहि जहावसरपत्तं विदियभासगाहाए विहासणं कुणमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाह * विदियाए भासगाहाए समुक्कित्तणा । २११. सुगमं । * तं जहा । $ २१२. सुगमं । (११८) विदिया दो पुण पढमा संखेज्जगुणा दु वग्गणग्गेण । विदियादो पुण तदिया कमेण सेसा विसेसहिया ॥ १७१ ॥ २१३. एसा विदियभासगाहा पुग्वत्तपदे सग्गाणुसारेणेव बारसहं संगह किट्टीणं वग्गणगस्स वि सत्याण- परत्थाणप्पा बहुअपरूवण मोइण्णा । संपहि एदिस्से किंचि अवयवत्थपरूवणं कस्साम । तं जहा - 'विदियादो पुण पढमा०' एवं भणिदे कोहविदियसंग्रह किट्टीए सव्व वग्गणाहितो पढमसंगह किट्टीए वग्गणासमूहो संखेज्जगुणो त्ति भणिदं होदि, पुण्वत्तविहाणेण ८१ * उससे क्रोध संज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज संख्यातगुणा है । $ २१०. तेरहगुणा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि नोकषाय के समस्त द्रव्य के साथ वषायसम्बन्धी द्रव्यका बारहवां भाग क्रोधसंज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टिरूपसे परिणत हुआ है । इस प्रकार इतने प्रबन्ध द्वारा प्रथम भाष्यगाथाके अर्थकी प्ररूपणा करके अब यथावसर प्राप्त दूसरी भाष्यगाथाकी विभाषा करते हुए आगे के सूत्रप्रबन्धको कहते हैं— * अब दूसरी भाष्यगाथाको समुत्कीर्तना करते हैं । $ २११. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे । § $ २१२. यह सूत्र सुगम है । (११८) क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिसे प्रथम संग्रह कृष्टि वर्गणा समूहकी अपेक्षा संख्यातगुणी है । किन्तु उसीकी दूसरी संग्रह कृष्टिसे तीसरी संग्रह कृष्टि वर्गणासमूहको अपेक्षा विशेष अथिक है । इसी प्रकार मान आदिकी भी संग्रह कृष्टियाँ क्रमसे वर्गणा समूहकी अपेक्षा विशेष अधिक हैं ॥१७१॥ ६.२१३. यह दूसरी भाष्यगाथा पूर्वोक्त प्रदेशपुंजके अनुसार ही बारह संग्रह कृष्टियों सम्बन्धी वर्गणासमूहके भो स्वस्थान और परस्थान अल्पबहुत्व के प्ररूपण करनेके लिए अवतीर्ण हुई है । अब इसके अवयवोंकी किचित् अर्थप्ररूपणा करेंगे। वह जैसे - 'विदियादो पुण पढमा०' ऐसा कहनेपर क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिके समस्त वर्गणासमूहसे प्रथम संग्रह कृष्टिका वर्गणा समूह संख्यातगुणा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि पूर्वोक्त विधिसे उसमें तेरहगुणे वर्गणा ११
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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