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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे १९७. संपहि विदियसंगह किट्टीए जहण्णकिट्टिप्पहूडि अनंतगुणक्रमेण गदकिट्टीओली दो मसंग किट्टीए जहष्ण किट्टिमादि का दूणाणंतगुण कमेण गर्दा कट्टोओली वि संखेज्जगुणा चेव होदि । कि कारण ? कोहविदियसंगह किट्टीए चरिम कसरिणियपदेस पिडादा पढमसंगह कट्टोए जहण किट्टिस रिसधणियपदेसग्गमणत भागहोणं हादि ति पुख्वमणंतरोवाणधाए भणिदं । तण जगज्जद तेरसगुणमेत्तपदेस पडण विदियसंगहाकट्टीए सह एयगोवुच्छासेढोए णिव्वत्तिज्जमानपढमसंग कट्टाए अंतर किट्टीणं पंती विदिवसंगहाकट्टाए सयलकिट्टी आयामादो नियमा तेरसगुणा चेव हो|दत्ति, अण्णा ता समेयगोवुच्छत्ताणुववत्तीदा । ७६ १९८. संपाह एवेण सुतेण परुविदको हसंजलणसत्याणप्पाबहुअस्सुच्चारणक्कमो वुच्चदे । तं जहा - सव्वत्थाव कोहस्स विदियसंगह किट्टीए पदेसग्गं । तदियसंगहां कट्टाए पवेसग्गं विसेसाहियं । केत्तियमत्तेण ? पालदोवमस्सा संखेज्जादभागेण खंडिदेयखंडत्त । कुदो एवं असख्यातवां भाग अधिक आधा भाग २५ कषायसम्बन्धी द्रव्य होता है और शेष असंख्यातवां भाग हीन आधा २४ नाकषायसम्बन्धी द्रव्य हाता है । यतः चारा संज्वलनोकी संग्रह कृाष्ट्यां १२ है, अतः कषायसम्बन्धो द्रव्यको इन १२ संग्रह कृष्टिया में विभाजित करनपर क्राधसंज्वलनका प्रथम संग्रह कृष्टिका साधिक २ अंक प्रमाण द्रव्य प्राप्त होता है । इसी प्रकार आगेकी प्रत्येक संग्रह कृष्टिको भी साधिक २ अंक प्रमाण द्रव्य प्राप्त होता है । पुनः नोकषायोके समस्त द्रव्यक क्राधसंज्वलनके प्रथम संग्रह कृष्टिमे संक्रमित होनेपर उसका कुल द्रव्य सब मिलाकर २४ +२= २६ अंक प्रमाण होता है। अब इसमें क्रोधसंज्वलनको दूसरी संग्रह कृष्टिके २ अंक प्रमाण द्रव्यका भाग देनेपर क्राध संज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिका कुल द्रव्य २६ ÷२-१३ अंक प्रमाण प्राप्त होता है जो क्रोधसंज्वलनकी द्वितीय संग्रह कृष्टिक २ अंक प्रमाण द्रव्यसे तेरहगुणा सिद्ध होता है । $ १९७. अब दूसरी संग्रह कृष्टको जघन्य कृष्टिसे लेकर अनन्त गुणितक्रमस प्राप्त कृष्टिसम्बन्धी पंक्ति से प्रथम संग्रह कृष्टिका जघन्य कृष्टिसे लेकर अनन्त गुणितक्रमस प्राप्त कृष्टिसम्बन्धो पंक्ति संख्यातगुणा ही होती है । शंका- इसका क्या कारण है ? समाधान - क्रोधको दूसरो सग्रह कृष्टिसम्बन्धी अन्तिम कृष्टिके सदृश धनवाले प्रदेशपिण्डप्रथम संग्रह कृष्टिसम्बन्धो जघन्य कृष्टिका सदृश धनवाला प्रदेशपुंज अनन्त भागहीन होता है यह पहले अनन्तरापनिधाकी अपेक्षा कह आये हैं। इससे जानते है कि तेरहगुणे प्रदेश पिण्डको अपेक्षा दूसरा संग्रह कृष्टि के साथ एक गापुच्छा श्रोणरूपसे निष्पद्यमान प्रथम संग्रह कृष्टिसम्बन्धा अन्तर कृष्टियों की पंक्ति दूसरी संग्रह कृष्टि सम्बन्धी समस्त कृष्टिआयामसे नियमस तरहगुणी ही होता है, अन्यथा उनकी एक गोपुच्छा नहीं बन सकती । विशेषार्थ - पूर्व में दूसरी संग्रह कृष्टिसे प्रथम संग्रह कृष्टि तेरहगुणी है यह सिद्ध कर आये हैं सो उससे ऐसा समझना चाहिए कि दूसरी संग्रह कृष्टिको जितनी अन्तर कृष्टियोंकी पंक्ति है उससे प्रथम संग्रह कृष्टिसम्बन्धी अन्तर कृष्टियोंकी पंक्ति तेरहगुणी है । $ १९८. अब इस सूत्र द्वारा कहे गये क्रोधसंज्वलनके स्वस्थान अल्पबहुत्व के उच्चारण क्रमका कथन करते हैं। वह जैसे - क्रोधकी दूसरी संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज सबसे अल्प है। उससे तीसरी संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज विशेष अधिक है । शंका - कितना अधिक है ?
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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