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________________ जयवलास हिदे कसा पाहुडे ६ १८८. 'किट्टी च पदेसग्गेणेत्ति' एदम्मि मूलगाहापढमावयवे किट्टीस पदेसग्गस्सावद्वाणपरूवणालवखणो पढमो अत्थो गिबद्धो । तत्थ य पंच भासगाहाओ होंति, ताहि विणा पयदत्थविसयणिण्णय परूवणाणु ववत्तीवो त्ति वृत्त होइ । ७२ * अणुभागग्गेणेत्ति विदियो अत्थो । एत्थ एक्का भासगाहा । $ १८९. 'अणुभागग्गेणेत्ति' एवम्मि गाहासुत्तविदियावयव किट्टीसु अणुभागस्स योवबहुतपरूवणप्पओ विदियो अत्यो णिबद्धो । तम्हि विहासिज्जमाणे एक्का भासगाहा होदि त्ति एसो एत्थ सुत्तस्थसंगहो । सेसं सुगमं । * का च कालेत्ति तदिओ अत्थो । एत्थ छन्भासगाहाओ । $ १९०. ' का च कालेत्ति' एदम्मि मूलगाहात दियावयवभूवबीजपदे तदिओ अत्थो किट्टीणं कालविसेसावहारण लक्खणो णिबद्धो । तत्थ य छन्भासगाहाओ पडिबद्धाओ । तासि समुक्कित्तणं विहासणं च जहाकममेव कस्सामो त्ति वृत्तं होइ । 'गुणेण किं वा विसेसेणेत्ति' एसो चरिमो सुत्तावयवो तिहदेसिमत्याणं विसेसणभावेण णिद्दिट्ठो, अण्णहा सुत्तत्थस्सा संपुण्णत्तप्पसंगादो । संपहि जहाकमपेदेस तिरहमत्याणमप्पप्पणी भासगाहाहिं विहासणं कुणमाणो चुण्णिसुत्तवारो विहासा गंथमुत्तरं भणइ । * पढमे अत्थे भासगाहाणं समुक्कित्तणा । १८८. 'किट्टी च पदेसग्गेण' मूल गाथाके इस प्रथम वचनमें कृष्टियों में प्रदेशपुंजके अवस्थानकी प्ररूपणा करने रूप लक्षणत्राला प्रथम अर्थ निबद्ध है । उस अर्थ में पांच भाष्यगाथाएं हैं, क्योंकि उनके बिना प्रकृत अर्थविषयक निर्णयको प्ररूपणा नहीं हो सकती यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * 'अणुभागग्गेण' अर्थात् कौन कृष्टि किस कृष्टिसे अनुभाग पुंजकी अपेक्षा अधिक, होन या समान है यह दूसरा अर्थ है । इस अर्थ में एक भाष्यगाथा निबद्ध है । ६१८९. 'अणुभागग्गेण' इस गाथासूत्रके दूसरे अवयवसम्बन्धो कृष्टियों में अनुभागके अल्पबहुत्वका प्ररूपणा करनेवाला दूसरा अर्थ निबद्ध है । उसको विभाषा करनेके अर्थ में एक भाष्यगाथा आयी है इस प्रकार यहां पर यह सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । शेष कथन सुगम है । * 'का च काले' अर्थात् कौन कृष्टि किस कृष्टि से कालको अपेक्षा अधिक, होन या समान है यह तीसरा अर्थ है । इस अर्थ में छह भाष्यगाथाएँ प्रतिबद्ध हैं । $ १९०. ' का च काले' मूल गाथाके तीसरे अवयवभूत इस बीजपदमें कृष्टियोंके कालविशेषका अवधारण करनेरूप उक्षणवाला तीसरा अर्थ निबद्ध है । उस अर्थ में छह भाष्यगाथाएँ प्रतिबद्ध हैं । उनकी समुत्कीर्तना और विभाषा क्रमानुसार ही करेगें यह उक्त कथनका तात्पर्य है । 'गुणेण कि वा विसेसेण' यह अन्तिम सूत्रवचन है जो इन तीन अर्थों में से प्रत्येक में विशेषता दिखलाने के प्रयोजनसे निर्दिष्ट किया गया है अन्यथा सूत्रार्थकी असम्पूर्णताका प्रसंग प्राप्त होता है । अब क्रमानुसार इन तीन अर्थोंका अपनी-अपनी भाष्यगाथाओंके साथ विभाषा करते हुए चूर्णिसूत्रकार आगे विभाषाग्रन्थको कहते हैं * अब प्रथम अर्थ में निबद्ध भाष्यगाथाओं की समुत्कीर्तना करते हैं ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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