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________________ चउत्थगाहाए अत्यपरूवणा * अणुभागबंधो अप्पसत्थाणमणंतगुणो, पसत्थाणं कम्मंसाणमणंतगुणहीणो । १२२. संकिलेसवुड्डीए अप्पसत्थाणं पंचणाणावरणादीणं अणंतगुणो अणुभागबंधो होइ । पसत्थाणं पुण सादादिपयडीणमणंतगुणहीणो होदि त्ति सुत्तत्थो । एवं समये समये णेदव्वं जाव सुहुमसांपराइयचरिमसमयो ति । णवरि एदम्हि काले संखेज्जसहस्समेत्ता हिदिबंधा तिण्हं घादिकम्माणं अधादिकम्माणं च विसेसाहियवड्डीय दट्ठन्वा । एवमेदाणि आवासयाणि सुहुमसांपराइयद्धाए परूविय संपहि अण्णाणि वि आवासयाणि एत्थ संभवंताणि परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ * लोभं वेदयमाणयस्स इमाणि आवसयाणि । 5 १२३. सुगमं । * तं जहा। ६ १२४. एदं पि सुगमं । * लोभवेदगद्धाए पढमतिभागे किट्टीणमसंखेना भागा उदिण्णा । शंका-ऐसा कैसे होता है ? समाधान-क्योंकि अन्तर्मुहूर्त काल तक अवस्थित स्थितिबन्ध स्वीकार किया गया है। * अप्रशस्त कर्मोंका अनुभागबन्ध अनन्तगणा होता है और प्रशस्त कर्मोका अनन्तगुणा हीन होता है। $ १२२. संक्लेशकी वृद्धि होनेके कारण ज्ञानावरणादि पाँच कर्मोका अनन्तगुणा अनुभाग होता है, परन्तु सातावेदनीय आदि प्रशस्त प्रकृतियोंका अनन्तगुणा हीन होता है यह उक्त सूत्रका अर्थ है, इस प्रकार सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक प्रत्येक समयमें जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इस कालमें तीन घाति और अघाति कर्मोंका विशेष अधिक वृद्धिके प्रमाणसे संख्यात हजार स्थितिबन्ध जानना चाहिये। इस प्रकार सूक्ष्मसाम्परायके कालमें इन आवश्यकोंका कथन करके अब यहाँ पर जो अन्य आवश्यक सम्भव हैं उनका कथन करते हुए आगेके सूत्र प्रबन्धको कहते हैं * लोकका वेदन करनेवालेके ये आवश्यक होते हैं। ६ १२३. यह सूत्र सुगम है। * वे जैसे। 5 १२४. यह सूत्र भी सुगम है। * लोमवेदककालके प्रथम त्रिभागमें कृष्टियोंके असंख्यात बहुभाग उदीर्ण होते हैं। १. पढमतिभागो इति पाठः क० पा० सु० ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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