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________________ चउत्थगाहाए अत्यपरूवणा * उक्कस्सयं संतकम्ममसंखेज्जगुणं । $ ७६. किं कारणं ? हेट्ठिमासेसरासीणमेदस्सासंखेज्जदिभागपमाणत्तादो । एत्थ गुणगारो गुणसंकमभागहारादो असंखेज्जगुणहीणो पलिदो० असंखे भागो। संपहि एदमप्पाबहुअंणqसयवेदपदेसग्गमहिकिच्च परूविदमिदि जाणावणहमिदमाह * एदं सव्वमंतरदुसमयकदे णqसयवेदपदेसग्गस्स अप्पाषहुअं । ७७. गयत्थमेदं । * इत्थीवेवस्स वि णिरवयवमेवमप्पाबहुअमणुगंतव्वं । अट्ठकसायछण्णोकसायाणमुदयमुदीरणं च मोत्तूण एवं चेव बत्तव्वं । पुरिसवेदचदुसंजलणाणं च जाणिद ण णेदव्वं । गवरि बंधपदस्स तत्थ सव्वत्थोवत्तं वट्ठव्वं । 5७८. एवमेदम्मि अप्पाबहुए समत्ते कदिभागुवसामिज्जदि त्ति एदिस्से विदियगाहाए अत्थविहासा समत्ता भवदि । संपहि एत्तो तदियगाहाए जहावसरपत्तमत्थविहासमुल्लंघियूण चउत्थगाहाए अत्थविहासणं कुणमाणो उत्तरं पबंधमाह-किमट्टमेवं * उत्कृष्ट सत्कर्म असंख्यातगुणा है। ६७६. क्योंकि पूर्व में कही गयी समस्त राशियाँ इसके असंख्यातवें भागप्रमाण है । यहाँपर गुणकार गुणसंक्रम भागहारसे असंख्यातगुणाहीन पल्योपमके असंक्यातवें भागप्रमाण है। प्रकृतमें यह अल्पबहुत्व नपुंसकवेदके प्रदेशपुंजको अधिकृत करके प्ररूपित किया है इसका ज्ञान करानेके लिए आगे सूत्र कहते हैं * सब अन्तर कर चुकनेके दूसरे समयमें होनेवाले नपुंसकवेदसम्बन्धी प्रदेशपुंजका यह अल्पबहुत्व है। ६७७. यह सूत्र गतार्थ है। * स्त्रीवेदका भी यह सब पूरा अन्पबहुत्व जानना चाहिये । आठ कषाय और छह नोकषायोंका भी उदय और उदीरणाको छोड़कर इसी प्रकार अल्पबहुत्व कहना चाहिये । पुरुषवेद और चार संज्वलनका जानकर कहना चाहिये । इतनी विशेषता कि पुरुषवेद और चार संज्वलनोंके अल्पबहुत्वमें बन्धपदका सबसे स्तोकपना जानना चाहिये। ६७८. इस प्रकार इस अल्पबतुत्वके समाप्त होनेपर कितने भागको उपशमाता है इस प्रकार इस दूसरी गाथाकी अर्थ प्ररूपण्ण समाप्त हुई। अब आगे तीसरी गाथाकी अवसर प्राप्त अर्थप्ररूपणाको उल्लंधन कर चौथी गाथाके अर्थकी विशेष व्याख्या करते हुए आगेके प्रबन्धको कहते हैं
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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