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________________ सव्वोवसामणाविसयट्ठदिणिद्देसो ४०. व सयवेदादीणमण्णदरस्स णिरुद्धकम्मस्स अंतोमुहुत्तेण उवसामिज्जमाणस्स पढमसमय पहुडि जाव चरिमसमयो त्ति ताव समए उवसामिज्जमाणस्स पदेसग्गस्स असंखेज्जगुणाए सेढीए उवसामणा पयट्टदि त्ति भणिदं होदि । तदो दुचरिमादिट्टिमसमएस असंखेज्जदिभागो उवसामिज्जदि । चरिमसमए च असंखेज्जा भागा पदेसग्गस्स उवसामिज्जति त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो । * एवं सव्वकम्माणं । १५ $ ४१. णव सयवेदादिसव्वकम्माणं एसो चेव कमो, णाण्णारिसोत्ति भणिदं होइ । $ ४२ एवमुवसामिज्जमानपदेसग्गस्स सेढिपरूवणं काढूण संपहि ट्ठिदीणमुवसामणा कां पयहृदि ति एदस्स णिण्णयकरणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि * द्विदीओ उदयावलियं बंधावलियं च मोत्तूण सेसाओ सव्वाओ समए समए उवसामिज्जति । ४०. नपुंसकवेद आदि जो अन्यतर विवक्षित कर्मसम्बन्धी प्रदेशपुंज अन्तर्मुहूर्तके द्वारा उपशमाया जाता है उस उपशमाये जानेवाले प्रदेशपु जकी प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समयतक प्रत्येक समय में असंख्यातगुणी श्र ेणिरूपसे उपशामना प्रवृत्त होती है यह उक्त चूर्णिसूत्रका तात्पर्य है । इसलिए सिद्ध हुआ कि द्विचरम समय से पूर्व के सब समयों में असंख्यातवाँ भागप्रमाण प्रदेशपु ंज उपशमाया जाता है और अन्तिम समयमें प्रदेशपुंजका असंख्यात बहुभाग उपशमाया जाता है । यह इस चूर्णसूत्रका भावार्थ है । * इसी प्रकार सब कर्मोंके विषय में जानना चाहिये । ४१. नपुसकवेद आदि सब कर्मोंका यही क्रम है, अन्य प्रकारका नहीं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । विशेषार्थ - यहाँ प्रथम गाथाके उत्तराधंकी प्ररूपणा करते हुए चारित्रमोहनीयकी २१ प्रकृतियोंकी किस क्रमसे उपशामना होती हैं इसे स्पष्ट करते हुए सर्व प्रथम सामान्यसे सभी २१ प्रकृतियोंकी उपशामना पर विशेष प्रकाश डालते हुए बतलाया गया है कि जिस कर्मकी उपशामना होती है उसमें अन्तर्मुहूर्त काल लगता है । उसमें भी प्रथम समयमें सबसे कम प्रदेशपुजकी उपशामना होती है । आगे अन्तर्मुहूर्त काल तक प्रत्येक समय में उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजको उपशामना होती जाती है । और इस प्रकार एक अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर तत्कर्मसम्बन्धी पूरा प्रदेशपुज उपशामित हो जाता है । जो जीव क्रोधादि कषायोंमेंसे किसी एक कषाय और पुरुषवेदकी अपेक्षा श्रेणिपर आरोहण करता है उसके सर्व प्रथम नपुंसकवेदकी उपशामना होती है । इसके बाद क्रमसे स्त्रीवेद आदिकी उपशामना होती है। क्रमका निर्देश पहले ही कर आये हैं । § ४२. इस प्रकार उपशमको प्राप्त होनेवाले प्रदेशपुंजकी श्र ेणिप्ररूपणा करके अब उक्त कर्मोकी स्थिति उपशामना कैसे प्रवृत्त होती है इस प्रकार इस बातका निर्णय करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * उदयावलि और बन्धावलिको छोड़कर शेष सब स्थितियाँ प्रत्येक समयमें उपशमित होती जाती हैं ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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