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________________ सव्वोवसामणाविसयपयडिणिद्देसो ३३. सुगममेदं । णवरि छण्णोकसाएसु उवसंतेसु पच्छा समयणदोआवलिमेत्तकालचरिमसमए पुरिसवेदणवकबंधो उबसमदि त्ति वत्तव्वं । * तदो तिविहो कोहो उसमदि। * तदो तिविहो माणो उवसमदि। * तदो तिविहा माया उवसमदि । ३४. एदाणि तिण्णि वि सुत्ताणि सुबोहाणि । * तदो तिविहो लोहो उवसमदि किविज्जो। ३५. एदं पि सुगमं । अणियट्टिबादरसंपराइयचरिमसमए किट्टिवज्जस्स तिविहस्स लोहस्स सव्वोवसामणापरिणामो होदि त्ति पुव्वमेव परूवदत्तादो । * किटीसु लोहसंजलणमुवसमदि । ३६. गयत्थमेदं पि सुत्तं, सुहुमसांपराइयचरिमसमए मुहुमकिट्टीसरूवेण लोहसंजलणमुवसामेदि त्ति पुव्वमेव परूविदत्तादो। * तदो सव्वं मोहणीयं उवसंतं भवति । ६ ३७. कुदो ? किट्टीसु उवसामिदासु गिरवसेसस्स मोहणीयस्स उवसंतभावेणावट्ठाणदंसणादो। एवमेत्तिएण पबंधेण पढमगाहाए अत्थविहासं समाणिय संपहि 5 ३३. यह सूत्र सुगम हे । इतनी विशेषता है कि छह नोकषायोंका उपशम हो जानेपर तदनन्तर एक समय कम दो आवलिप्रमाण कालके अन्तिम समयमें पुरुषवेदके नवकबन्धका उपशम होता है ऐसा कथन करना चाहिये। .. * उसके बाद तीन क्रोधों का उपशम होता है। * उसके बाद तीन मानोंका उपशम होता है। * उसके बाद तीन मायाका उपशम होता है । $ ३४. ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं । * उसके बाद कृष्टियोंको छोड़कर तीन लोभोंका उपशम होता है। $ ३५. यह सूत्र भी सुगम है। अनिवृत्तिबादरसाम्परायके अन्तिम समयमें कृष्टियोंको छोड़कर तीन प्रकारके लोभोंकी सर्वोपशामनारूप पर्याय हो जाती है यह पहले ही कह आये हैं। * तदनन्तर कृष्टिगत लोभसंज्वलनका उपशम होता है।। ६३६. यह सूत्र भी गतार्थ है, क्योंकि सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमें सूक्ष्म कृष्टिरूपसे लोभर्सज्वलनका उपशम होता है यह पहले ही कह आये हैं। * ऐसा होनेपर सम्पूर्ण मोहनीयकर्म उपशममावको प्राप्त हो जाता है । $ ३७. क्योंकि कृष्टियोंके उपशमित हो जानेपर सम्पूर्ण मोहनीयकर्मका उपशमरूपसे अवस्थान देखा जाता है । इस प्रकार इतने प्रबन्ध द्वारा प्रथम गाथाके अर्थका व्याख्यान समाप्त
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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