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जययवासहिदे कसायपाहुडे ओकड्डिज्जमाणस्स पदेसग्गस्स हाणि त्ति सण्णा । ओकड्डुक्कड्डणाहि विणा सत्थाणावट्ठिदस्स पदेसग्गस्स अवट्ठाणसण्णा त्ति मणिदं होइ
8 एदीए सण्णाए एक्कं हिदि वा पडुच्च सव्वानो वा द्विदीओ पडुच्च अप्पाबहुअं ।
5 ४२६. एदीए अणंतरपरूविदाए सण्णाए परिच्छिण्णसरूवाणं वड्डि-हाणिअवट्ठाणाणं णाणेगट्ठिदीओ अस्सिदूण थोवबहुत्तमिदाणिं कस्सामो त्ति भणिदं होदि, णाणेगट्ठिदिविसये पयदप्पाबहुआलावस्स गाणताणुवलंभादो ।
* तं जहा। $ ४२७. सुगमं । * वड्डी थोवा । हाणी असंखेनगुणा । अवट्ठाणमसंखेनगुणं ।
. ४२८. गयत्थमेदं सुत्तं । एवं खवगोवसामगे पडुच्च णाणेगट्ठिदिविसयमेदमप्पाबहुअं परूविय संपहि अक्खवगाणुवसामगेसु पयदप्पाबहुअपवुत्ती कषं होदि त्ति आसंकाए सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
* अक्खवगाणुवसामगस्स पुण सव्वाओ हिदीओ एगहिदि वा वृद्धि यह संज्ञा है तथा अपकर्षित होनेवाले प्रदेशपुजकी हानि यह संज्ञा है। तथा अपकर्षण और उत्कर्षणके बिना स्वस्थानमें अवस्थित प्रदेशजकी अवस्थान संज्ञा है यह उक्त सूत्रवचनका तात्पर्य है।
* इस संज्ञाके अनुसार एक स्थितिको आश्रय कर अथवा सर्व स्थितियोंको आश्रय कर अल्पबहुत्व कहते हैं ।
$ ४२६. अनन्तर प्ररूपित इस संज्ञाके अनुसार परिच्छिन्न स्वरूपवाले वृद्धि, हानि और अवस्थानकी एक स्थिति या नाना स्थितियोंको आश्रय कर इस समय अल्पबहुत्वको प्ररूपणा करेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि नाना स्थिति और एक स्थितिके विषयमें प्रकृत अल्पबहुत्वका नानापन नहीं पाया जाता है।
* वह जैसे। ६४२७. यह सूत्र सुगम है।
* वृद्धि सबसे स्तोक है । उससे हानि असंख्यातगुणी है और उससे अवस्थान असंख्यातगुणा है।
३४२८. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार क्षपक और उपशामककी अपेक्षा नाना और एक स्थितिविषयक इस अल्पबहुत्वका कथन करके अब अक्षपक और अनुपशामकोंमें प्रकृत अल्पबहुत्वकी प्रवृत्ति कैसे होती है ऐसी आशंका होनेपर आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* किन्तु अक्षपक और अनुपशामकके तो सभी स्थितियोंकी अपेक्षा और एक