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जयधवला
अपूर्वस्पर्धककी आदि वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेद तिगुणे होते हैं। इसी प्रकार आगे भी अन्तिम अपूर्व स्पर्धकके प्राप्त होने तक जानना चाहिये । तथा इसी प्रकार माया, मान और क्रोधकी अपेक्षा भी कथन करना चाहिये।
यहाँ जो अविभागप्रतिच्छेदोंके अल्पवहुत्वकी प्ररूपणा की है बह एक-एक परमाणुमें जो अनुभाग प्राप्त होता है उसकी अपेक्षा ही जाननी नाना परमाणुओंमें सदृश धनकी विवक्षासे यदि प्ररूपणा की जाती है तो प्रथम स्पर्धककी आदि वर्गणामें जितने अविभागप्रतिच्छेद होते है उनसे दूसरे स्पर्धककी आदि वर्गणामें कुछ कम दूने अविभाग प्रतिच्छेद प्राप्त होते हैं । आगे भी इसी प्रकार कुछ कम करते जाना चाहिये । आगे प्रकृतमें पूर्व और अपूर्व स्पर्धक तथा उनकी वर्गणाओंका प्रमाणविषयक निर्णय प्राप्त करनेके लिये अल्पबहुत्वका विधान कर अन्तर्मुहूर्त कालमें निष्पन्न होनेवाले अश्वकर्ण करणकी प्ररूपणा समाप्त की गई है।
फूलचन्द्र शास्त्री
७-११-८२