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________________ २७२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ६३०६. सुगमं । (९६) गुणसेढि असंखेजा च पदेसग्गेण संकमो उदयो । से काले से काले भज्जो बंधो पदेसग्गे ॥१४९॥ $३०७. एदीए विदियगाहाए पदेसविसयाणमुदयसंकमबंधाणं सत्थाणप्पाबहुअणिद्दे सो कदो। तं जहा—'गुणसेढि असंखेज्जा च' एवं भणिदे पदेसग्गेण णिहालिज्जमाणे संकमो उदओ च णियमा असंखेज्जाए सेढीए पयदि त्ति घेत्तन्वं, संपहियकालभाविसंकमोदएहितो से कालविसयसंकमोदयाणं गुणसंकमगुणसेढिपाहम्मेणासंखेज्जगुणत्तसिद्धौए णिप्पडिबंधमुवलंभादो । एत्थ गुणसंकमविवक्खाए संकमो असंखेज्जगुणो णिहिट्ठो । अधापवत्तसंकमे पुण अवलंविज्जमाणे असंखेज्जगुणो ण होदि, विसेसाहिओ वा विसेसहीणो वा होदि, तत्थ पयारंतरासंभवादो । 'से काले से काले एवं भणिदे वीप्सानिर्देशोऽयं द्रष्टव्यः । अधवा एक्को से कालणि सो गाहापुव्वद्धणिहिट्ठाणमुदयसंकमाणं विसेसणभावेण संबंधणिज्जो, अण्णो पच्छद्धणिहिस्स बंधस्स विसेसणभावेण जोजेयव्यो । 'भज्जो बंधो पदेसग्गे' एवं भणिदे पदेसग्गविसओ बंधो चउन्विहवड्डि-हाणि-अवट्ठाणेहिं भजियव्वो ति भणिदं होइ, जोगवड्डि-हाणिअवट्ठाणवसेण पदेसबंधस्स तहाभावसिद्धीए विरोहाभावादो। संपहि एदस्सेवत्थस्स फुडीकरणट्टमुत्तरो विहासागंथो $ ३०६. यह सूत्र सुगम है। (९६) प्रदेशजकी अपेक्षा संक्रम और उदय तदनन्तरं तदनन्तर समयमें असंख्यातगुणित श्रेणिरूप होते हैं। किन्तु प्रदेशपुंजका आश्रय कर बन्ध भजनीय है ॥१४९।। $३०७. इस दूसरी भाष्यगाथा द्वारा प्रदेशविषयक उदय, संक्रम और बन्धके स्वस्थान अल्पबहत्वका निर्देश किया है। वह जैसे-'गुणसेढि असंखेज्जा च' ऐसा कहनेपर प्रदेशपुजकी अपेक्षा देखनेपर संक्रम और उदय नियमसे असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे प्रवृत्त होते हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि साम्प्रतिक कालमें होनेवाले संक्रम और उदयसे तदनन्तर कालमें होनेवाले संक्रम और उदयकी, गुणसंक्रम ओर गुणश्रेणिकी प्रधानतावश असंख्यातगुणे रूपसे, सिद्धि बिना बाधाके उपलब्ध होती है। यहाँपर गुणसंक्रमको विवक्षामें संक्रम असंख्यातगुणा निर्दिष्ट किया है। परन्तु अधःप्रवृत्त संक्रमका अवलम्बन करनेपर संक्रम असंख्यातगुणा नहीं होता, किन्तु विशेष अधिक या विशेष हीन होता है, क्योंकि इस विषयमें अन्य प्रकार सम्भव नहीं है । 'से काले से काले' ऐसा कहनेपर यह वीप्सानिर्देश जानना चाहिये। अथवा एक 'से काले' पदके निर्देशका सम्बन्ध गाथाके पूर्वार्धमें निर्दिष्ट किये गये उदय और संक्रमके साथ विशेषणरूपसे करना चाहिये तथा दूसरे से काले' पदको उत्तरार्धमें निर्दिष्ट किये गये बन्ध पदके साथ विशेषणरूपसे युक्त करना चाहिये । 'भज्जो बंधो पदेसग्गे' ऐसा कहनेपर प्रदेशपुजविषयक बन्ध चार प्रकारकी वृद्धि, चार प्रकारको हानि और अवस्थानकी अपेक्षा भजनीय है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि योगकी वृद्धि, हानि और अवस्थानवश प्रदेशबन्धकी उक्त प्रकारसे सिद्धि होनेमें विरोधका अभाव
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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