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खवगसेढीए विदियमूलगाहाए तदियभासगाहा
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पयट्टत्तादो । संपहि एवंविहमेदस्स गाहापुव्वद्धस्स अत्थविसेसं विहासेमाणो सुत्तपबंध -
मुत्तरं भणइ
* 'जेसिमोवणा' त्ति का सण्णा १
$ २०७. जेसिं कम्माणमोवट्टणा अत्थि तेसिं सव्वधादीणमबंधगोत्ति मणिदं । तत्थ जेसिमोवट्टणाति का एसा सण्णा १ ण एदिस्से अत्थविसेसो सम्भमवगम्मइ त्ति पुच्छा देण कदा होइ ।
* जेसिं कम्माणं देसघादिफद्दयाणि अत्थि तेसिं कम्माणमोवट्टणा अत्थि त्ति सण्णा ।
$ २०८. जेसिं कम्माणमणुभागस्स देसघादिफद्दयाणि संभवंति तेसिं कम्माणमोट्टा अथिति एसा सण्णा एत्थ णादव्वा त्ति वृत्तं होइ, देसघादिसरूवेणोवट्टणाए तत्थ संभवदंसणादो । तम्हा एवंविहं सण्णाविसेसमस्सियूण पयद्गाहापुवद्धे तत्थविहासा एवमणुगंतव्वा त्ति जाणावेमाणो इदमाह -
* एदी सण्णाए सव्वावरणीयाणं जेसिमोवट्टणा त्ति एदस्स पदस्स विहासा ।
९ २०९. सुगमं ।
देशामर्षकरूपसे प्रवृत्ति हुई है । अब इस गाथाके पूर्वार्धके इस प्रकारके अर्थविशेषकी विभाषा करते हुए आगे सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
जिन कर्मोंकी अपवर्तना होती है उनकी क्या संज्ञा है ?
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२०७. जिन कर्मों की अपवर्तना होती है उनका सर्वघातिरूपसे अबन्धक है यह उक्त कथन का तात्पर्य है | अतः प्रकृतमें जिन कर्मोकी अपवर्तना होती है उनकी यह संज्ञा क्या ? इसका विशेष अर्थं सम्यक् प्रकारसे ज्ञात नहीं है इस प्रकार इस सूत्र द्वारा पृच्छा की गई है।
* जिन कर्मोंके देशघातिस्पर्धक हैं उन कर्मोंकी अपवर्तना यह संज्ञा है ।
$ २०८. जिन कर्मोंके अनुभागके देशघातिस्पर्धक सम्भव हैं उन कर्मोंकी अपवर्तना होती है इस प्रकार यह संज्ञा यहाँ जानना चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य हैं, क्योंकि उनकी देशघातिरूपसे अपवर्तना सम्भव दिखलाई देती है, इसलिये इस प्रकार की संज्ञाविशेषका अवलम्बन लेकर प्रकृत गाथाके पूर्वार्ध में सूत्रके अर्थका व्याख्यान इस प्रकार जानना चाहिये ऐसा जनाते हुए इस सूत्रको कहते हैं
* इस संज्ञाके अनुसार जिनके सर्वघाति स्पर्धकों की अपवर्तना होती है उनके इस पदकी विभाषा की गई है ।
$ २०९. यह सूत्र सुगम है ।