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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
मासगाहाणमुच्चारणं वक्खाणं च जुगवमेव वत्तइस्सामो, गंथगउरवपरिहारट्ठमिदि एसो
एत्थ सुत्तत्थसन्भावो ।
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* तं जहा ।
$ १९६- सुगमं ।
(७८) वस्ससदसहस्साइं द्विदिसंखाए दु मोहणीयं तु । बंधदि च सदसहस्सेसु असंखेज्जेसु सेसाणि ॥ १३१ ॥
$ १९७ एसा पढमस्स अत्थस्स पढमभासगाहा अंतरदुसमय कदावत्था वट्टमाणस्स संकामणपटुवगस्स मोहादिकम्माणं द्विदिबंधपमाणं जाणावेदि । तं कथं ? 'वस्ससदसहस्साइं ' एवं भणिदे संखेज्जवस्ससदसहरसमेत्तट्ठि दिसंखाए मोहणीयकम्मं बंदि' त्ति देण मोहणीयस्स डिदिबंधपमाणं परूविदं । अंतरकरणे कदे संखेज्जवस्सिओ चैव मोहणीयस्स द्विदिबंधो होदि ति णियमदंसणा दो । 'बंधदि य सहस्सेसु एवं मणिदे सेसाणि णाणावरणादिकम्माणि असंखेज्जेसु वस्सस हस्से से ट्ठिदिसंखाए वट्टमाणाणि बंधदित्ति तेसिमसंखेज्जवस्सस हस्सिय ट्टिदिबंधपवृत्ती तदवत्थाए परूविदा दट्ठव्वा, ताघे तत्थ पयारंतरासंभवादो ।
$ १९८. एत्थ गाहापुव्वद्धे दोन्हं 'तु' सद्दाणं णिद्दे सो पादपूरणट्टो, अणुत्तकरना है । अतः तीनों भाष्यगाथाओंकी उच्चारणा और व्याख्यानको ग्रन्थकी गुरुताका परिहार करनेके लिये एक साथ ही बतलावेंगे यह यहाँ इस सूत्रके अर्थका आशय है ।
* वह जैसे ।
$ १९६. यह सूत्र सुगम है ।
(७८) स्थितिबन्धकी परिगणनाकी अपेक्षा यह जीव मोहनीय कर्मको संख्यात लक्षवर्ष प्रमाण बांधता है और शेष कर्मोंको असंख्यात लक्षवर्षप्रमाण बांधता है ॥ १३१ ॥
$ १९७. यह प्रथम अर्थसम्बन्धी प्रथम भाष्यगाथा अन्तरकरण क्रिया किये जाने के दूसरे समयमें विद्यमान हुए संक्रामक प्रस्थापक के मोहनीय आदि कर्मोंसम्बन्धी स्थितिबन्ध के प्रमाणका ज्ञान कराती है ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान – क्योंकि ' वस्ससद सहस्साई' ऐसा कहनेपर स्थितिबन्धकी संख्या की अपेक्षा मोहनीय कर्मको लक्षवर्ष प्रमाण बांधता है इस प्रकार इस वचन द्वारा मोहनीयकर्मके स्थितिबन्धकी प्ररूपणा की है, क्योंकि अन्तरकरण करनेपर मोहनीयकर्मका संख्यात वर्षप्रमाण ही स्थितिबन्ध होता है ऐसा नियम देखा जाता है । 'बंधदि य सदसहस्सेसु' ऐसा कहनेपर ज्ञानावरणादि शेष कर्म स्थितिबन्धकी संख्या की अपेक्षा असंख्यात वर्षप्रमाण होकर ही बँधते हैं इस प्रकार उस अवस्था में उन कर्मोंके स्थितिबन्धकी प्रवृति असंख्यात हजार वर्षप्रमाण कही गई जाननी चाहिये, क्योंकि उस समय उन कर्मोंके स्थितिबन्धके होनेमें अन्य प्रकार सम्भव नहीं है
$ १९८. यहाँ भाष्यगाथाके पूर्वार्धमें जो दो बार 'तु' शब्द आया है सो वह पादपूरणके