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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे * से काले अस्सकण्णकरणं पवत्तिहिदि । $ १५८. तदनंतरसमए अवगदवेदो होदूण कोहसंजलणक्खवणमाढवेंतो अस्सकण्णकरणं णाम करणविसेसमेसो पवत्तिहिदि, सत्तणोकसायक्खवणानंतर मेदस्स जहावसरपत्तत्तादोत्ति वृत्तं होइ । * अस्सकण्णकरणं ताव थवणिज्जं, इमो ताव सुत्तफासो । $ १५९. जहावसरपत्तमवि अस्सकण्णकरणं ताव थवणिज्जं काढूण हेट्ठिमासेसत्थविसये णिच्छयुप्पायणट्ठमेत्थुद्दे से इमो ताव गाहासुत्ताणमणुवादो कायव्वोत्त मणिदं होदि । एसो च सुत्तफासो हेट्ठा कदमम्मि अवत्थंतरे पयट्टमाणस्स जीवस्स कायव्वोत्ति आसंकाए तव्विसयणिदे सकरणडमुत्तरमुत्तं भण: २१८ * अंतरदुसमयकदमादिं काढूण जाव छण्णोकसायाणं चरिमसमयसंकामगोत्ति एदिस्से अद्धाए अप्पा त्ति कट्टु सुत्तं । - $ १६०. अंतरदुचरिमफालिं संकामिय से काले णवु सयवेदस्स आजुत्तकरणसंकामणमाढविय द्विदस्स जीवस्स अंतरदुसमयकदावत्था णाम भवदि । तमादिं काढूण जाव चरिमसमयछण्णोकसाय संकामगोत्ति एदम्मि अवत्थाविसेसे 'अप्पा वट्टदि' त्ति च्चयार्थ है | * तदनन्तर समयमें अश्वकर्णकरणकालमें प्रवृत्त होगा $ १५८. तदनन्तर समय में अपगतवेदी होकर क्रोधसंज्वलनकी क्षपणाका आरम्भ करता हुआ अश्वकर्णकरण संज्ञावाले करणविशेषमें यह प्रवृत्त होगा, क्योंकि सात नोकषायोंकी क्षपणाके अनन्तर यह अवसर प्राप्त है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * तो भी अश्वकर्णकरणको स्थगित करके सर्वप्रथम इस सूत्रगाथाका स्पर्श करते हैं । $ १५९. यद्यपि अश्वकर्णकरण यथावसर प्राप्त है तो भी उसे स्थगित करके अधस्तन समस्त अर्थके विषयमें निश्चय करनेके लिये इस स्थानमें सर्वप्रथम गाथासूत्रों का यह अनुवाद करना चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है । और यह सूत्रस्पर्श नीचे ( पूर्व में ) किस अवस्थाविशेष में प्रवृत्त होनेवाले जीवके करना चाहिये ऐसी आशंका होनेपर उस विषयका निर्देश करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * द्विसमयकृत अन्तरसे लेकर छह नोकषायोंके संक्रमके अन्तिम समयतक इस कालमें आत्मा है एतद्विषयक सूत्र कहते हैं । $ १६० अन्तरसम्बन्धी द्विचरम फालिको संक्रमित करके तदनन्तर समयमें नपुंसक वेदके आयुक्तकरण संक्रमका आरम्भ करके स्थित हुए जीवके अन्तरद्विसमयकृत अवस्था कहलाती है । उससे लेकर अन्तिम समयवर्ती छह नोकषायोंके संक्रामक जीवके प्राप्त होनेतक इस अवस्था
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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