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________________ २१३ खवगसेढीए सत्तणोकसायक्खवणाए कज्जविसेसपरूवणा * हिदिबंधो णापा-गोद-वेदणीयाणं असंखेजगुणहीणो । * घादिकम्माणं हिदिबंधो संखेजगुणहीणो । ६१४२. सुगम । * तदो हिदिखंडयपुधत्तेण गदे सत्ताहं णोकसायाणं खवणद्धाए संखेजदिभागे गदे णामा-गाद-वेदणीयाणं संखेजाणि वस्लाणि हिदिबंधो । $ १४३. जाव एद रं ताव असंखेज्जवस्सिओ होणागच्छ पाणो णामा-गादवेदणीयाणं द्विदिबंधो एदम्मि उद्देसे संखेज्जवस्ससहस्सपमाणो जादो ति मणिदं होइ । एवमेत्थुद्देसे सम्बेसि कम्माणं द्विदिबंधो जहाकम संखेज्जवस्पिओ जादो । संपहि एत्तो प्पहुडि हिदिखंडयपुधत्तेसु बहुएसु गदेसु सत्तणोकसायक्खवणद्धाए संखेज्जा भागा गदा होति । ताधे तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिसंतकम्मं पुव्वमसंखेज्जवस्सियं होदूण गच्छमाणं विसेसघादवसेण संखेज्जवस्सियं संजादमिदि पदुप्पाएमाणो सुत्तरमुत्तरं भणइ के तदो हिदिखंडयपुत्ते गदे सत्तण्हं णोकसायाणं खवणद्धाए संखेज्जेसु भागेसु गदेसु णाणावरण-दसणावरण अंतराइयाणं संखेजवस्सहिदिसंतकम्मं जादं । $ १४४. गयत्थमेदं सुत्तं । णवरि एत्थ द्विदिखंडयपुधत्तणिदेसो जेण वइपुन्लॐ नाम, गोत्र और वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा हीन होता है। पातिकर्मीका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हीन होता है। ६ १४२. यह सूत्र सुगम है। * तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके जानेपर सात नोकषायोंके क्षपणाकालके संख्यातवें भागके जानेपर नाम, गोत्र और वेदनीयकर्मका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है। $ १४३. जबतक इतनी दूर जाते हैं तबतक नाम, गोत्र और वेदनीयकर्मका असंख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होकर आता हुआ इस स्थानमें संख्यात हजार वर्षप्रमाण हो जाता है। अब यहाँसे लेकर बहुत स्थितिकाण्डकोंके जानेपर सात नोकपागोंके क्षपणाकालके संख्यात बहुभाग व्यतीत हो जाते हैं तब तीन घातिकर्मोंका स्थितिसत्कर्म पहले असंख्यात वर्षप्रमाण होकर आता हुआ विशेष घातके कारण संख्यात वर्षप्रमाण हो जाता है इस बातका कथन करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके जानेपर सात नोकपायोंके क्षपणाकालके संख्यात बहुभाग जानेपर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म हो जाता है। $ १४४. यह सूत्र गतार्थ है। इतनी विशेषता है कि यहाँपर स्थितिकाण्डकपृथक्त्वका
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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