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________________ खवगसेढीए अणियट्टिकरणे अन्तरकरणपरूवणा २०७ खंडयं जो च अंतरे उक्कीरिजमाणे हिदिवंधो पबद्धो जं च हिपिखंडयं जाव अंतरकरणद्धा एदाणि समगं णिहाणियमाणाणि णिट्टिवाणि । ६ १२७. किं कारणं ? अंतरचरिमफालीए णिवदमाणाए तिण्हमेदासिमद्धाणमणुभागखंडयसहस्सगब्माणमक्कमेणेव परिसमत्तिदंसणादो । * से काले पढमसमय-दुसमयकदं । $ १२८. जम्हि जम्हि समए अंतरचरिमफाली णिवदिदा, तम्हि समए अंतरं पढमसमयकदं णाम भण्णदे। तदणंतरसमए पुण अंतरं दुसमयकदं णाम मवदि । तम्हि पयट्टमाणकज्जविसेसपदुप्पायणमुत्तरसुत्तावयारो____ ताघे चेव गqसयवेदस्स आजुत्तकरणसंकामगो । मोहणीयस्स संखेजवस्सहिदिगो बंधो, मोहणीयस्स एगट्ठाणिया बंधोदया। जाणि कम्माणि वज्झति तेसिं छुसु आवलियासु गदासु उदीरणा। मोहणीयस्स आणुपुव्वीसंकमो । लोहसंजलणस्स असंकमो। एदाणि सत्त करणाणि अंतरदुसमयकदे आरद्धाणि । ६ १२९. अंतरदुसमयकदावत्थाए चेव णवुसयवेदस्स आयुत्तकरणसंकामयत्तकाण्डकको तथा अन्तरको उत्कीरित करते हुए जो स्थितिबन्ध बाँधा था और जो स्थितिकाण्डक प्रारम्भ किया था वे तीनों ही अन्तरकरण कालके समाप्त होनेतक समाप्त होते हुए एक साथ समाप्त हो जाते हैं। ६१२७. क्योंकि अन्तरकी अन्तिम फालिके पतन होते समय हजारों अनुभागकाण्डकगर्भ इन तीनों ही कालोंकी एक साथ समाप्ति देखी जाती है । तदनन्तर समयमें अन्तर प्रथम समयकृत और द्विसमयकृत होता है। ६१२८. जिस-जिस समयमें अन्तरकी अन्तिम फालि पतित होती है उस समयमें अन्तर प्रथम समयकृत कहलाता है। परन्तु तदनन्तर समयमें अन्तर द्विसमयकृत होता है। उस समय प्रारम्भ होनेवाले कार्यविशेषका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार हुआ है * उसी समय नपुंसकवेदका आयुक्तकरण संक्रामक होता है। मोहनीयकर्मका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है। मोहनीयका एक स्थानीय बन्ध और उदय होता है। जो कर्म बंधते हैं उनकी छह आवलिकाल जानेपर उदीरणा होती है। मोहनीयका आनुपूर्वीसंक्रम होने लगता है तथा लोभसंज्वलनका असंक्रामक होता है । ये सात करण अन्तरके द्विसमयकृत होनेपर अर्थात् अन्तरकरणके अनन्तर समयमें प्रारम्भ हो जाते हैं। 5 १२९. अन्तरके द्विसमयकृत अवस्थामें ही नपुंसकवेदके आयुक्तकरण संक्रामकपनेसे लेकर १. ताप्रती भवदि इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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